Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 375
________________ ३४६ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध Sociaaaaaaaaaaaaaaacccccccccccccccccccccccccccccx षष्ठ वर्ग अध्ययन १-३२ छटो वि वग्गो पंचम वग्ग सरिसो णवरं महाकायाईणं उत्तरिल्लाणं इंदाणं अग्गमहिसीओ। पुव्वभवे सागेय णयरे उत्तरकुरुउजाणे मायापियरो धूया सरिसणामया। सेसं तं चेव। छट्ठो वग्गो समत्तो। · भावार्थ - छठा वर्ग भी पांचवें वर्ग के सदृश है। विशेषता यह है कि उनमें उत्तरदिशावर्ती महाकाल इन्द्रों की अग्रमहीषियों का वर्णन है। उनके पूर्वभव का वृत्तांत इस प्रकार है - साकेत नामक नगर में उत्तरकुरु नामक उद्यान था। माता-पिता एवं पुत्रियों के नाम सदृश कहे गए हैं। शेष वर्णन पूर्ववत् है। इस प्रकार छठा वर्ग समाप्त होता है। · || छठा वर्ग समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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