Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 381
________________ ३५२ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध soocccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx ... उस काल, उस समय सौधर्मकल्प में, पद्यावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में पद्म नामक सिंहासन पर पद्मा देवी आसीन थी। शेष वर्णन कालीदेवी की भांति योजनीय है। शेष सात अध्ययन सूत्र-३ - एवं अट्ठ वि अज्झयणा कालीगमएणं णायव्वा णवरं सावत्थीए दोजणीओ हत्थिणाउरे दोजणीओ कंपिल्लपुरे दोजणीओ सागेय णयरे दोजणीओ पउमे पियरो विजया मायराओ सव्वाओ वि पासस्स अंतिए पव्वइयाओ सक्कस्स अग्गमहिसीओ ठिई सत्त पलिओवमाइं महाविदेहे वासे अंतं काहिति। - णवमो वग्गो समत्तो। भावार्थ - इसी प्रकार आठों अध्ययन काली देवी के वृत्तांत के अनुसार ज्ञातव्य है। उनके पूर्वभव के संबंध में विशेष बात यह है कि-उनमें से दो का जन्म श्रावस्ती में, दो का हस्तिनापुर में, दो का कांपिल्यपुर में तथा दो का साकेत नगर में हुआ। सबके पिता का नाम पद्म तथा माता का नाम विजया था। सभी ने भगवान् पार्श्वनाथ से प्रव्रज्या स्वीकार की। वे सभी शक्रेन्द्र की अग्रमहीषियाँ बनीं। इन सभी की स्थिति सात पल्योपम बतलाई गई है। सभी महाविदेह क्षेत्र में मुक्ति प्राप्त करेंगी, समस्त दुःखों का अन्त करेंगी। इस प्रकार नवम वर्ग का समापन होता है। ॥ नवम वर्ग समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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