Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 383
________________ ३५४ ज्ञाताधमकथाग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध CCCCCCCCCccccccccccccccccccccccccccccccccccccce उस काल, उस समय ईशान कल्प में, कृष्णावतंसक विमान में, सुधर्मा सभा में कृष्ण नामक सिंहासन पर कृष्णा देवी समासीन थी। शेष वर्णन कालीदेवी की तरह ग्राह्य है। शेष अध्ययन सूत्र-३ एवं अट्ठवि अज्झयणा कालीगमएणं णेयव्वा णवरं पुव्वभवो वाणारसीए णयरीए दोजणीओ रायगिहे णयरे दोजणीओ सावत्थीए णयरीए दोजणीओ कोसंबीए णयरीए दोजणीओ रामे पिया धम्मा माया सव्वाओ वि पासस्स . अरहओ अंतिए पव्वइयाओ पुप्फचूलाए अजाए सिस्सिणियत्ताए ईसाणस्स अग्गमहिसीओ ठिई णवपलिओवमाइं महाविदेहे वासे सिज्झिहिंति बुझिहिंति मुच्चिहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। एवं खलु जंबू! णिक्खेवओ दसमवग्गस्स। दसमो वग्गो समत्तो। भावार्थ - इसी प्रकार आठों अध्ययन काली देवी के वृत्तांतानुरूप ज्ञातव्य हैं। उनके पूर्वभव के वृत्तांत के संदर्भ में यह विशेष बात है कि - उनमें से दो का जन्म वाराणसी नगरी में, दो का राजगृह नगर में, दो का श्रावस्ती नगरी में तथा दो का कौशाम्बी में हुआ। - इन सबके पितृ का नाम राम तथा माता का नाम धर्मा था। सभी ने तीर्थंकर पार्श्व के पास प्रव्रज्या स्वीकार की। प्रभु पार्श्व ने आर्या पुष्पचूला को इन्हें शिष्या के रूप में सौंप दिया। साधनापूर्वक देहत्याग कर वे ईशानेन्द्र की प्रधान देवियों के रूप में स्थित हुईं। इनकी स्थिति नौ पल्योपम बतलाई गई है। महाविदेह वर्ष (क्षेत्र) में ये सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगी, सब दुःखों का अंत करेंगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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