Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 379
________________ ३५० . ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध සසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසපපපපපපපපපපපපපපපු उज्जाणे चंदप्पभे गाहावई चंदसिरी भारिया चंदप्पभा दारिया चंदस्स अग्गमहिसी ठिई अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं, सेसं जहा कालीए। . भावार्थ - उस काल, उस समय चन्द्रप्रभ नामक विमान में चन्द्रप्रभ संज्ञक सिंहासन पर चन्द्रमा देवी समासीन थी। अवशिष्ट वर्णन काली देवी की भांति ग्रास हा। उसके पूर्वभव की विशेषता यह है - मथुरा नामक नगरी थी। चन्द्रावतंसक नामक उद्यान था। वहाँ चन्द्रप्रभ नामक गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम चन्द्रश्री था। उनके चन्द्रप्रभा नाम कन्या थी। वह प्रव्रजित होकर, साधना पूर्वक देह-त्याग कर चन्द्र नामक ज्योतिष्केन्द्र की प्रधान देवी के रूप में उत्पन्न हुई।.. इसकी स्थिति पचास सहस्त्र वर्ष अधिक अर्द्ध पल्योपम बतलाई गई है। शेष काली देवी की तरेह योजनीय है। शेष तीन अध्ययन सूत्र-४ एवं सेसाओ वि महुराए णयरीए माया पियरो (वि) धूया सरिसमाणा। अट्ठमो वग्गो समत्तो। भावार्थ - अवशिष्ट सभी देवियाँ अपने पूर्व भव में मथुरा नगर में जन्मी। माता-पिता का नाम पुत्रियों के सदृश था। इस प्रकार आठवां वर्ग परिसमाप्त होता है। ॥ आठवां वर्ग समाप्त॥ * * * * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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