Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३४८
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසා
भावार्थ - उस काल उस समय सूर(सूर्य) विमान में सूरप्रभ सिंहासन पर, सूरप्रभादेवी समासीन थी। शेष वर्णन कालीदेवी की तरह योजनीय है।
उसके पूर्व भव की विशेष बात यह है -
अरक्षुरी नामक नगरी में सूरप्रभ नामक गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम सुरश्री था। इनकी पुत्री का नाम सूरप्रभा था।
प्रव्रज्योपरांत, साधनापूर्वक देह-त्याग कर 'सूरप्रभा' सूर नामक ज्योतिष्केन्द्र की प्रधान देवी के रूप में उत्पन्न हुई। इसकी स्थिति पांच सौ वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम बतलाई गई है। अवशिष्ट वर्णन काली देवी की तरह है।
शेष अध्ययन
. सूत्र-४ एवं सेसाओ वि सव्वाओ अरक्खुरीए णयरीए। सत्तमो वग्गो समत्तो। भावार्थ - इस प्रकार सभी कन्याएँ अरक्षुरी नगरी में उत्पन्न हुई।' इस प्रकार सप्तम वर्ग पूर्ण होता है।
___ || सप्तम समाप्त॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org