Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आकीर्ण नामक सतरहवां अध्ययन - अकस्मात् कालिकद्वीप पहुँचने का संयोग २६३ XANEKIKANERISPEEEEEEEEKCECRoccascecomecxikacccccccccccx
भावार्थ - इसी प्रकार जहाँ वे घोड़े बैठते यावत् जमीन पर लोटते, वहाँ-वहाँ उन कौटुंबिक पुरुषों ने बहुत से कृष्ण, नील आदि विविध रंगों में काष्ठ पर बनाए गए चित्रांकन यावत् संघातिम आदि और भी अनेक प्रकार के आँखों को प्रिय लगने वाली वस्तुएं वहाँ रख दी। उनके चारों ओर जाल फैला दिए तथा वे निश्चल, निष्पद, निःशब्द होकर, वहाँ छिप कर बैठ गए।
(१६) ___जत्थ २ ते आसा आसयंति ४ तत्थ तत्थ णं ते कोडंबियपुरिसा तेसिं बहूणं कोट्ठपुडाण य अण्णेसिं च घाणिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य णियरे य करेंति २त्ता तेसिं परिपेरंते जाव चिट्ठति।
शब्दार्थ - बियरे - निकर (बिखरे हुए समूह)
भावार्थ - जहाँ-जहाँ वे घोड़े बैठते, सोते, खड़े होते या जमीन पर लोटते वहाँ वहाँ कौटुंबिक पुरुषों ने बहुत से कोष्ठपुट आदि घ्राणेन्द्रियों को प्रिय लगने वाले सुगंधित पदार्थों के ढेर फैला दिए। वहाँ जाल बिछा दिए यावत् वे छिप कर चुपचाप बैठ गए।
(२०) जत्थ णं ते आसा आसयंति ४ तत्थ-तत्थ गुलस्स जाव अण्णेसिं च बहूणं जिभिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य णियरे य करेंति २त्ता वियरए खणंति २ त्ता गुलपाणगस्स खंडपाणगस्स पोरपाणगस्स अण्णेसिं च बहूणं पाणगाणं वियरे भरेंति २त्ता तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेंति जाव चिट्ठति।
शब्दार्थ - वियरए - खड्डे, पोरपाणगस्स - गन्ने का रस।
भावार्थ - जहाँ-जहाँ वे घोड़े बैठते-खड़े होते या जमीन पर लोटते, वहाँ-वहाँ कौटुंबिक पुरुषों ने गुड़ यावत् खांड, मिश्री आदि रसनेन्द्रिय को स्वादिष्ट लगने वाले द्रव्य ढेर के ढेर बिखेर दिए। - ऐसा कर उन्होंने खड्डे खोदे। उन खड्डों को गुड़ के पानी, खांड के पानी, गन्ने के रस तथा
और भी बहुत प्रकार के पेय पदार्थों से भर दिया। उनके चारों ओर जाल लगा दिए तथा पूर्ववत् निश्चल, निष्पंद बैठ गए।
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