Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 308
________________ सुसुमा नामक अट्ठारहवां अध्ययन चिलात का चोर पल्ली में आश्रय, प्राधान्य ***GGGGCGGC¤¤¤¤¤¤¤ - बहूहि गामघाएहि य णगरघाएहि य गोग्गहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य उवीलेमाणे २ विद्धंसेमाणे २ णित्थाणं णिद्धणं करेमाणे विहरन | शब्दार्थ - बंदिग्गहणेहि - लोगों को बंदी बनाकर, पंथकुट्टणेहि - राहगीरों को कूटपीटकर, णित्थाणं - निःस्थान-स्थान रहित, णिद्धणं - निर्धन | २७६ भावार्थ वह चोर सेनापति राजगृह नगर के अग्निकोण में स्थित जनपद के अन्तवर्ती ग्रामों, नगरों को उजाड़ देता। गायों को चुरा लेता। लोगों का अपहरण कर लेता। राहगीरों को मार-पीटकर लूट लेता। दीवालों में छेद कर, चोरी कर लेता। इस प्रकार वह विनाश का कहर ढहाता हुआ लोगों को स्थान रहित, धन रहित करता रहता । चिलात का चोर पल्ली में आश्रय, प्राधान्य (१४) तए णं से चिलाए दासचेडे रायगिहे णयरे बहूहिं अत्थाभिसंकीहि य चोजाभिसंकीहि य दाराभिसंकीहि य धणिएहि य जूइकरेहि य परब्भवमाणे २ रायगिहाओ णगरीओ णिग्गच्छड़ २ त्ता जेणेव सीहगुहा चोरपल्ली तेणेव उवागच्छइ २ त्ता विजयं चोर सेणाव उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । शब्दार्थ - अत्थाभिसंकीहि - धन चुरा लिए जाने की शंका से युक्त, चोज्जाभिसंकीहिभविष्य में चोरी की आशंका से युक्त, दाराभिसंकीहि - स्त्रियों से दुराचरण की शंका से युक्त, उवसंपज्जित्ताणं - चोरपल्ली में आश्रय पाकर । Jain Education International भावार्थ तत्पश्चात् राजगृह नगर में दास पुत्र चिलात् द्वारा धन चुराए जाने से आकुल,. भविष्य में उसकी चोरी से आशंकित, स्त्रियों से दुराचार की शंका से युक्त, जिनका पैसा नहीं चुकाया, ऐसे धनी जुआरियों से वह पराभव तिरस्कार पाता हुआ, राजगृह नगर से निकल पड़ा। वह पूर्वोक्त सिंह गुफा स्थित चोर पल्ली में पहुँचा तथा विजय चोर की शरण प्राप्त कर रहने लगा। (१५) तए णं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणावइस्स अग्गे असिलट्ठिग्गाहे जाए या होत्था। जाहे वि य णं से विजए चोर सेणावई गामघायं वा जाव - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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