Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 367
________________ ३३८ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध तृतीय वर्ग सूत्र-१ उक्खेवओ तइयवग्गस्स। एवं खलु जंबू! समणेणं० तइयवग्गस्स चउपण्णं अज्झयणा पण्णत्ता - पढमे अज्झयणे जाव चउपण्णइमे अज्झयणे। भावार्थ - तृतीय वर्ग का उत्क्षेप-उपोद्घात यहाँ योजनीय है। यथा - जंबू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से जब इस वर्ग के संबंध में जिज्ञासा की तब सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तृतीय वर्ग के प्रथम से लेकर यावत् चौपन तक अध्ययन बतलाए हैं। प्रथम अध्ययन सूत्र-२ जइ णं भंते! समणेणं० धम्मकहाणं तइयवग्गस्स चउप्पण्णज्झयणा पण्णत्ता। पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं० के अहे पण्णत्ते? भावार्थ - आर्य जंबू ने पुनः निवेदन किया-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने धर्मकथा के तृतीय वर्ग के प्रथम यावत् चौपन अध्ययन बतलाए हैं तो कृपया फरमाएं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्ररूपित किया है? . इला देवी का भगवान् की सेवा में आगमन सूत्र ३ __एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए सामी समोसढे, परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं इला देवी धारणीए रायहाणीए इलावडेंसए भवणे इलंसि सीहासणंसि एवं काली गमएणं जाव णविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। . भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! उस काल, उस समय राजगृह नामक नगर था। उसमें गुणशील नामक चैत्य था। भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। वंदन, दर्शन करने परिषद् आई यावत् धर्मोपदेश सुना, पर्युपासना की। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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