Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 370
________________ ३४१ चतुर्थ वर्ग - प्रथम अध्ययन sccccccmaaaaaaaaaaaaaaaaccccccccccccccccccccccces - चतुर्थ वर्ग सूत्र-१ चउत्थस्स उक्खेवओ। एवं खल जंबू! समणेणं० धम्मकहाणं चउत्थवग्गस्स चउप्पण्णं अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा-पढमे अज्झयणे जाव चउप्पण्णइमे अज्झयणे। भावार्थ - चौथे वर्ग का उत्क्षेप-प्रारंभ यहाँ पूर्ववत् योजनीय है। अर्थात् आर्य जंबू की जिज्ञासा का समाधान करते हुए सुधर्मा स्वामी ने कहा - हे जंबू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने धर्मकथा के चौथे वर्ग के चौपन अध्ययन बतलाए हैं जो प्रथम से चौपन अध्ययन पर्यन्त इस प्रकार हैं - . प्रथम अध्ययन सूत्र-२ पढमस्स अज्झयणस्स उक्खेवओ। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ।... भावार्थ - यहाँ प्रथम अध्ययन का उपोद्घात-प्रारंभ पूर्व की भांति योजनीय है। . आर्य सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! उस काल, उस समय, राजगृह नामक नगरी थी। भगवान महावीर स्वामी वहाँ समवसृत हुए यावत् वंदन, नमन हेतु परिषद् आई। धर्मोपदेश सुना, भगवान् की पर्युपासना की। रूपादेवी सूत्र-३ तेणं कालेणं तेणं समएणं रूय देवी रूयाणंदा रायहाणी रूयगवडेंसए भवणे रुयगंसि सीहासणंसि जहा कालीए तहा णवरं पुव्वभवे चंपाए पुण्णभद्दे चेइए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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