Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 368
________________ XX तृतीय वर्ग - अध्ययन २-६ SOSCCCCC ********X उस काल, उस समय इला देवी धरणी नामक राजधानी में, इलावतंसक प्रासाद में इलासंज्ञक सिंहासन पर आसीन थी। आगे का वर्णन काली देवी के वृत्तांत की तरह है यावत् वह भगवान् महावीर स्वामी की सेवामें आई, विविध प्रकार के नाटकों का प्रदर्शन किया और वापस लौट गई। सूत्र - ४ पुव्वभवपुच्छा । वाणारसीए णयरीए काममहावणे चेइए इले गाहावई इलसिरी भारिया इला दारिया सेसं जहा कालीए णवरं धरणस्स अग्गमहिसित्ताए उववाओ साइरेगं अद्धपलिओवमं ठिई सेसं तहेव । भावार्थ - गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से इसके पूर्व भव के संबंध में पूछा । भगवान् महावीर स्वामी ने उत्तर देते हुए फरमाया-वाराणसी नामक नगरी थी। वहाँ काम महावन नामक चैत्य था । जहाँ इल नामक गाथापति अपनी पत्नी इलश्री के साथ रहता था । इनके इला नामक पुत्री थी । अवशिष्ट वर्णन काली देवी की तरह है। Jain Education International ३३६ विशेष बात यह है कि वह धरणेन्द्र की अग्रमहिषी - प्रधान देवी के रूप में उत्पन्न हुई। उसकी स्थिति वहाँ आधे पल्योपम से कुछ अधिक बतलाई गई है । सूत्र - ५ एवं खलु जंबू ! णिक्खेवओ पढमज्झयणस्स । भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी ने कहा निक्षेप - सार-संक्षेप है। - हे जंबू ! इस प्रकार यह प्रथम अध्ययन का || प्रथम अध्ययन समाप्त ॥ अध्ययन २ से ६ तक सूत्र - ६ एवं कमा तेरा सोयामणी इंदा घणा विज्जुया - वि। सव्वाओ एयाओ धरणस्स अग्गमहिसीओ एव । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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