Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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उनके परिणाम स्वरूप सैकड़ों दुःखों से युक्त संसार रूपी भयावह अटवी में घोर दुःख पाता
रहता है ॥ १, २ ॥
यहाँ धन्य श्रेष्ठी गुरु स्थानीय है, साधु उसके पुत्रों के सदृश हैं तथा संसार घोरवन है। पुत्री के आमिष के सदृश आहार है और राजगृह नगर मोक्ष के तुल्य है।
जैसे घोर जंगल को पार करने के लिए और राजगृह नगर तक पहुँचने के लिए उन्होंने सुसुमा के मांस का भक्षण किया, उसी प्रकार साधु गुरु की आज्ञा से प्रासुक, एषणीय आहार करते हैं।
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भावितात्मा, महासत्त्व - आत्मपराक्रमी मुनि संसार सागर को पार करने और मोक्ष पद को प्राप्त करने हेतु आहार करते हैं। वे गृद्धि-आसक्ति वंश होकर अपने देह के वर्ण, बल और रूप को बढ़ाने हेतु आहार नहीं करते ।
॥ अठारहवाँ अध्ययन समाप्त ॥
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