Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
प्रथम वर्ग-काली नामक प्रथम अध्ययन - काली देवी का पूर्वभव वृत्तांत ३१६ SEEBERROREGEGOROSISCRECEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEKSEEEEEEEEEK कालीदेवी का पूर्वभव वृत्तांत
सूत्र-१२ .. अहो णं भंते! काली देवी महिड्डिया (३)! कालीए णं भंते! देवीए सा दिव्वा देविड्डी ३ किण्णा लद्धा किण्णा पत्ता किण्णा अभिसमण्णागया? एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूहीवे २ भारहे वासे आमलकप्पा णामं णयरी होत्था वण्णओ। अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया।
भावार्थ - भगवन्! काली देवी दिव्य ऋद्धि वाली है। काली देवी को वह दिव्य देवर्द्धि किस प्रकार मिली? कैसे प्राप्त हुई और किस प्रकार उसके सामने आई - उपभोग में आने योग्य
.. यहाँ भी सूर्याभ देव के समान ही समझना चाहिये यावत् हे गौतम! उस काल और उस समय में इस जम्बूद्वीप के भारत वर्ष में आमलकल्पा नामक नगरी थी। उसका वर्णन कहना
चाहिये। उस नगरी के बाहर आम्रशालवन नामक चैत्य था। वहाँ जितशत्रु नामक राजा राज्य - करता था।
सूत्र-१३ .. तत्थ णं आमलकप्पाए णयरीए काले णामं गाहावई होत्था अड्ढे जाव
अपरिभूए। तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी णामं भारिया होत्था सुकुमाल (पाणिपाया) जाव सुरूवा। तस्स णं काल(ग)स्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली णामं दारिया होत्था वड्डा वड्डकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी णिविण्णवरा वरपरिवजिया वि होत्था।
भावार्थ - उस आमलकल्पा नगरी में काल नामक गाथापति था। वह धनाढ्य यावत् सर्वमान्य था। गाथापति की कालश्री नामक भार्या थी। उसके हाथ-पैर आदि अंग यावत् सारा शरीर सौंदर्य युक्त था। उसके अपनी पत्नी कालश्री की कोख से काली नामक कन्या थी। वह
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org