Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३३० 1006
300000
विवेचन
भगवती सूत्र, प्रज्ञापना सूत्र आदि आगमों में देवों एवं देवियों की स्थिति का वर्णन है। वहाँ पर सर्वत्र भवनपति देवों के असुरकुमार के दक्षिणीय इन्द्र " चमरेन्द्र” की अग्रमहिषियों की स्थिति जघन्य उत्कृष्ट के बिना साढ़े तीन पल्योपम एवं उत्तरीय इन्द्र बलीन्द्र की अग्रमहिषियों की स्थिति साढे चार पल्योपम की ही बतलाई गई है । यहाँ पर चमरेन्द्र के अग्रमहिषियों की स्थिति अढाई पल्योपम बतलाई गई है। उपर्युक्त आगम पाठों को देखते हुए यहाँ का आगम पाठ लिपि प्रमाद से अशुद्ध हो जाना संभव लगता है।
इसी प्रकार द्वितीय वर्ग (बलीन्द्र की अग्रमहिषियों) की स्थिति साढे चार पल्योपम ही होना उचित है। यहाँ पर जो साढे तीन पल्योपम बतलाई गई है वह भी लिपि प्रमाद से अशुद्ध पाठ हो जाना संभव है।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
*********-**----
-
सूत्र - ३४
एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्ति बेमि ।
Jain Education International
॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥
भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी ने आर्य जंबू को संबोधित कर कहा - हे जंबू ! श्रमण यावत् सिद्धि प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ बतलाया है। • जैसा मैंने उनसे सुना, वैसा ही तुम्हें कहा है।
|| प्रथम अध्ययन समाप्त ॥
✿✿✿
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org