Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 362
________________ ३३३ प्रथम वर्ग-रजनी नामक तृतीय अध्ययन occccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx रयणी णामं तीयं अज्झयणं रजनी नामक तृतीय अध्ययन सूत्र-४० जइ णं भंते! तइयज्झयणस्स उक्खेवओ। भावार्थ - जंबू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से तृतीय अध्ययन के उत्क्षेप-उपोद्घात के रूप में पूछा - भगवन्! यदि प्रभु महावीर स्वामी ने दूसरे अध्ययन का यह अर्थ बतलाया है तो कृपया कहें, तीसरे अध्ययन का क्या अर्थ प्ररूपित किया है। सूत्र-४१ एवं खलु जंबू! रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए एवं जहेव राई तहेव रयणी वि णवरं आमलकप्पा णयरी रयणी गाहावई रयणसिरी भारिया रयणी दारिया सेसं तहेव जाव अंतं काहिइ। भावार्थ - इस पर आर्य सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। वहां गुणशील नामक चैत्य था। शेष सारा वर्णन पूर्वोक्त 'राई' अध्ययन की तरह ग्राह्य है यावत् रयणी महाविदेह क्षेत्र में मोक्ष प्राप्त करेगी, समस्त दुःखों का अंत करेगी। ॥ तृतीय अध्ययन समाप्त। विज्जू णामं चउत्थं अज्झयणं विज्जू नामक चतुर्थ अध्ययन - सूत्र-४२ - एवं विज्जूवि आमलकप्पा णयरी विज्जू गाहावई विज्जूसिरी भारिया विज्जू दारिया सेसं तहेव। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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