Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 357
________________ ३२८ - ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध జరిగిందిదిగిందించిందించిందించింది के द्वारा निवारित न की जाती हुई वह स्वच्छंदता पूर्वक बार-बार हाथों को धोती यावत् अंगादि धोती फिर बैठती, सोती। देवी के रूप में उत्पत्ति सूत्र-३० तए णं सा काली अज्जा पासत्था पासत्थविहारी ओसण्णा ओसण्णविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहाछंदा अहाछंदविहारी संसत्ता संसत्तविहारी बहूणि वासाणि सामण्ण परियागं पाउणइ २ ता अद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसेइ २ त्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेएइ २ त्ता तस्स ठाणस्स अणालोइय अपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए कालवडिंसए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेज्जाइ भागमेत्ताए ओगाहणाए कालिदेवित्ताए उववण्णा। भावार्थ - पार्श्वस्था-विपथगामिनी, पार्श्वस्थविहारिणी, अवसन्ना, अवसन्न-विहारिणी, कुशीला, कुशीलविहारिणी, स्वच्छंदा, स्वच्छंदविहारिणी, संसक्ता-ज्ञानाचार आदि के विपरीत, संसक्त विहारिणी साध्वी काली ने बहुत वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन किया। वैसा करती हुई अंत में अर्द्ध मासिक संलेखना स्वीकार कर स्वयं को क्षीण करती हुई, अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन कर, अपने द्वारा सेव्यमान पाप स्थान का आलोचन, प्रतिक्रमण किए बिना ही कालधर्म को प्राप्त कर, चमरचंचा राजधानी में कालावतंसक नामक विमान में, उपपात संभा-देवों के उत्पन्न होने के स्थान में, देवशय्या में, देवदूष्य वस्त्र से अंतरित-आच्छादित होती हुई, अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना द्वारा, काली देवी के रूप में उत्पन्न हुई। ... सूत्र-३१ - तए णं सा काली देवी अहुणोववण्णा समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए जहा सूरियाभो जाव भासामणपज्जत्तीए। शब्दार्थ - अहुणोववण्णा - तत्काल समुत्पन्न। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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