Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध । GEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEECccascacccccccccccccces
आर्या काली की देहासक्ति
सूत्र-२५ । तए णं सा काली अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाउसिया जाया यावि होत्था, अभिक्खणं २ हत्थे धो(व)वेइ पाए धोवेइ सीसं धोवेइ मुहं धोवेइ थणंतरा(इं)णि धोवेइ कक्खंतराणि धोवेइ गुज्झंतराणि धोवेइ जत्थ जत्थ वि य णं ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेइए तं पुव्वामेव अब्भुक्खेत्ता तओ पच्छा आसयइ वा सयइ वा। . भावार्थ - तदनंतर किसी समय साध्वी काली देह को अत्यंत साफ-सुथरा रखने में आसक्त हो गई। वह क्षण-क्षण हाथ, मुंह, मस्तक, कांख, स्तनांतराल, गुप्तांग धोती। जहाँ-जहाँ खड़ी होती, बैठती, सोती, कायोत्सर्ग करती, वहाँ पहले पानी छिड़कती। ऐसा करने के बाद ही बैठती, सोती।
सूत्र-२६ तए णं सा पुप्फचूला अज्जा कालिं अज्जं एवं वयासी-णो खलु कप्पड़ देवाणुप्पिए! समणीणं णिग्गंथीणं सरीरबाउसियाणं होत्तए, तुमं च णं देवाणुप्पिए! सरीरबाउसिया जाया अभिक्खणं २ हत्थे धोवसि जाव आसयाहि वा सयाहि वा तं तुम देवाणुप्पिए! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पायच्छित्तं पडिवज्जाहि। ___भावार्थ - आर्या पुष्पचूला ने साध्वी काली से इस प्रकार कहा - देवानुप्रिये! श्रमणियों, निर्ग्रथिनियों को शरीर की स्वच्छता में इस प्रकार आसक्त रहना नहीं कल्पता। देवानुप्रिये! तुम शारीरिक स्वच्छता में आसक्त हो गई हो। क्षण-क्षण हाथ धोती हो यावत् विभिन्न अंगों को, उठने-बैठने के स्थान आदि को धोती हो, फिर बैठती हो, सोती हो। देवानुप्रिये! इस पाप स्थान-पापपूर्ण आचरण की आलोचना करो यावत् प्रायश्चित्त स्वीकार करो।
सूत्र-२७ तए णं सा काली अज्जा पुप्फचूलाए अज्जाए एयमटुं णो आढाइ जाव तुसिणिया संचिट्ठइ। ......
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