Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम वर्ग-काली नामक प्रथम अध्ययन
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काली द्वारा श्रामण्य स्वीकार
सूत्र - २३
तणं (सा) काली कुमारी पासं अरहं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमइ २ त्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ २ त्ता सयमेव लोयं करेइ २ त्ता जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासं अरहं तिक्खुत्तो वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - आलित्ते णं भंते! लोए एवं जहा देवाणंदा जाव सयमेव पव्वाविउं ।
भावार्थ - कुमारी काली ने भगवान् पार्श्वनाथ को वंदन, नमन किया। वैसा कर वह उत्तर पूर्व दिशा भाग में गई । स्वयं ही अपने आभरण, मालाएं, अलंकार उतार दिए । स्वयमेव अपना केशलोचन किया। जहाँ पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ थे, वहाँ आई । उन्हें तीन बार वंदन नमन किया और निवेदन किया- भगवन्! यह लोक जन्म-मरणादि दुःखों से प्रज्वलित है। मैं इसे त्याग कर देवानंदा की तरह यावत् मैं चाहती हूँ आप स्वयं मुझे दीक्षित करें ।
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काली द्वारा श्रामण्य स्वीकार
सूत्र - २४
तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेव पुप्फचूलाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए दलयइ । तए णं सा पुप्फचूला अज्जा कालिं कुमारिं सयमेव पव्वावेइ जाव उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तए णं सा काली अज्जा जाया इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी । तए णं सा काली अज्जा पुप्फचूलाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ बहूहिं चउत्थ जाव विहर ।
भावार्थ- पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ ने स्वयं काली को पुष्पचूला आर्या को शिष्या के रूप में दिया। आर्या पुष्पचूला ने काली को स्वयं प्रव्रजित यावत् श्रमण धर्म में दीक्षित किया।
इस प्रकार वह काली ईर्या आदि समितियों से युक्त यावत् ब्रह्मचर्यादि महाव्रतों से युक्त साध्वी के रूप में परिणत हो गई। साध्वी काली ने आर्या पुष्पचूला के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत् उपवास आदि अनेकानेक तपश्चरण पूर्वक साधनारत रहने लगी ।
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