Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 352
________________ प्रथम वर्ग-काली नामक प्रथम अध्ययन काली द्वारा दर्शन, वंदन କର******************************* सूत्र - २० एवं खलु अम्मयाओ! मए पासस्स अरहओ अंतिए धम्मे णिसंते, सेविय धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए, तए णं अहं अम्मयाओ! संसारभउव्विग्गा भीया जम्मणमरणाणं इच्छामि णं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी पासस्स अरहओ अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबंधं करेहि । भावार्थ माता-पिता! मैंने तीर्थंकर पार्श्वनाथ का धर्मोपदेश सुना है । धर्म मुझे इच्छित, वांछित एवं अभिरुचित है। माता-पिता ! मैं जन्म-मरण रूप संसार की विकरालता से उद्विग्न एवं भयभीत हूँ। मैं आपसे आज्ञा प्राप्त कर भगवान् पार्श्वनाथ के सान्निध्य में गृहत्याग कर मुण्डित होकर, अनगार धर्म स्वीकार करना चाहती हूँ । माता-पिता ने कहा- देवानुप्रिय ! जिससे तुम्हारी आत्मा को सुख हो, वैसा करो । सत्कार्य में विलंब मत करो। ३२३ सूत्र - २१ तणं से काले गाहावइ विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ २त्ता मित्त-णाइ-णियग-सयणं- संबंधि-परियणं आमंतेइ २ त्ता तओ पच्छा पहाए जाव विपुलेणं पुप्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ (२) तस्सेव मित्त-णाइणियगसयणसंबंधिपरियणस्स पुरओ कालियं दारियं सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ २ त्ता सव्वालंकार विभूसियं करेइ २ त्ता पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरुहेइ २ ता मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबधिपरियणेणं सद्धिं संपरिवुडा सव्विड्डीए जाव रखेणं आमलकप्पं णयरिं मज्झंमज्झेणं णिगच्छइ २त्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता छत्ताइए तित्थगराइसए पासइ २त्ता सीयं ठवेइ २त्ता (कालियं दारियं सीयाओ पच्चोरुहइ । तए णं तं ) - कालियं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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