Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम वर्ग-काली नामक प्रथम अध्ययन
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आर्या काली की देहासक्ति ३२७ ---------☐☐00000=*:
भावार्थ - साध्वी काली ने आर्या पुष्पचूला की इस बात को कोई आदर नहीं दिया यावत् वह चुप रही।
सूत्र - २८
तए णं ताओ पुप्फचूलाओ अज्जाओ कालिं अज्जं अभिक्खणं २ हीलेंति जिंदंति खिसंति गरहंति अवमण्णंति अभिक्खणं २ एयमहं णिवारेंति ।
भावार्थ - तब आर्या पुष्पचूला साध्वी काली की बार-बार अवहेलना निंदा, भर्त्सना, गर्हा, अवमानना करती रहती तथा उसे उस पापस्थान से रोकती रहती ।
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सूत्र - २६
तए णं तीसे कालीए अज्जाए समणीहिं णिग्गंथीहिं अभिक्खणं २ हीलिज्जमाणीए जाव वारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्था - जया णं अहं अगारवासमज्झे वसित्था तया णं अहं सयंवसा । जप्पभिड़ं च णं अहं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया तप्पभिड़ं च णं अहं परवसा जाया । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए स्वणीए जाव जलंते पाडि (क्कि) क्कयं उवस्सयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए - तिकट्टु एवं संपेहेइ २त्ता कल्लं जाव जलंते पाडि (ए) क्कं उवस्सयं गिण्हइ तत्थ णं अणिवारिया अणोहट्टिया सच्छंदमइ अभिक्खणं २ हत्थे धोवेइ जाव आसयइ वा सयइ वा ।
शब्दार्थ - जप्पभिड़ं- यदाप्रभृति-जब से, पाडिक्कयं - पृथक् ।
भावार्थ - श्रमणियों, निर्ग्रथिनियों द्वारा बार-बार अवहेलना किए जाने पर यावत् स्वच्छता की आसक्ति से निवारित किए जाने पर काली के मन में ऐसा विचार उत्पन्न हुआ- जब मैं गृहस्थ जीवन में थी तब स्वच्छंद थी, इच्छानुसार वर्तन करती थी। जब से मैं मुंडित होकर प्रव्रजित हुई हूँ, तब से परवश- परतंत्र हो गई हूँ।
इसलिए कल प्रातः काल होने पर, सूर्य की किरणें फैल जाने पर मैं पृथक् उपाश्रय में जाकर रहूँगी।
यों विचार कर वह दूसरे दिन प्रातः काल होने पर पृथक् उपाश्रय में चली गई। वहाँ किसी
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