Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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का ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध । saeccccccccccccascacakacxcccccccccxaaaaaaax
सूत्र-६ ___ एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए सेणिए राया चेलणा देवी सामी समोसढे परिसा णिग्गया जाव परिसा पज्जुवासइ। - भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी ने कहा - हे जंबू! उस काल, उस समय राजगृह नामक नगर था। उसमें गुणशील नामक चैत्य था। वहाँ का राजा श्रेणिक था और चेलना रानी थी। भगवान् महावीर स्वामी वहाँ समवसृत हुए। दर्शन, वंदन हेतु परिषद् आई यावत् पर्युपासना करने लगी। - कालीदेवी का ऐश्वर्य
सूत्र-७ तेणं कालेणं तेणं समएणं काली णामं देवी चमरचंचाए रायहाणी कालवडेंसगभवणे कालंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं मयहरियाहिं सपरिवाराहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अण्णे य बहूहिँ कालवडिंसयभवणवासीहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिकुडा महया हय जाव विहरइ।।
भावार्थ - उस काल, उस समय चमरचंचा राजधानी में, कालावतंसक भवन में, काली देवी, काल नामक सिंहासन पर समासीन थी। चार सहस्त्र सामानिक देवियों, चार महत्तरिका देवियों, सपरिवार तीनों परिषदों, सात सेनाओं सात सेनाधिपतियों सोलह सहस्त्र आत्मरक्षक देवों तथा बहुत से असुरकुमार देवों और देवियों से संपरिवृत्त अत्यधिक गीत-वाद्यादि यावत् मनोरंजक साधनों के साथ सुख-निमग्न थी।
सूत्र-८ इमं च णं केवलकप्पं जंबूद्दीवं २ विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी २ पासइ। ए (त)त्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणं पासइ २ त्ता हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा जाव (हय) हियया सीहासणाओ अब्भुट्टेइ
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