Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 332
________________ पुण्डरीक नामक उन्नीसवां अध्ययन - तात्कालिक प्रभाव, पुनः पूर्ववत् ३०३ SHOCKINGGORKenococccccccxcccccCERECEExccccccccccccx जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता कंडरीयं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ ता वंदइ णमंसइ, वं० २ त्ता एवं वयासी - धण्णेसि! णं तुमं देवाणुप्पिया! कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे, सुलद्धे णं देवाणुप्पिया! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले जे णं तुमं रजं च जाव अंतेउरं च (वि) छ(ड्डइ) ड्डेत्ता विगोवइत्ता जाव पव्वइए, अहण्णं अहण्णे अकयपुण्णे रजे य जाव अंतउरे य माणुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए जाव अज्झोववण्णे णो संचाएमि जाव पव्वइत्तए, तं धण्णेसि णं तुमं देवाणुप्पिया! जाव जीवियफले। . शब्दार्थ - विगोवइत्ता - तिरस्कार कर। भावार्थ - जब राजा पुंडरीक को इस बात का पता चला तो वह स्नानादि से निवृत्त हुआ। अंतःपुर परिवार से घिरा हुआ वहाँ आया जहाँ कंडरीक था। मुनि कंडरीक को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा पूर्वक वंदन नमन किया और कहा - देवानुप्रिय! आप धन्य हैं, कृतार्थ हैं, कृत्पुण्य हैं, शुभ लक्षणयुक्त हैं। आपने मनुष्य जन्म और जीवन सफल बना लिया। क्योंकि आपने राज्य यावत् अंतःपुर का परित्याग कर, तिरस्कार कर यावत् प्रव्रज्या स्वीकार की। मैं अधन्य हूँ, अकृतपुण्य हूँ यावत् राज्य अंतःपुर और मनुष्य जीवन संबंधी काम-भोगों में मूर्च्छित हूँ। अतः मैं सर्वस्व त्याग कर यावत् प्रव्रजित होने में असमर्थ हूँ। देवानुप्रिय! आप धन्य हैं यावत् आपने अपना जीवन सफल बना लिया। तात्कालिक प्रभाव, पुनः पूर्ववत् तए णं से कंडरीए अणगारे पुंडरीयस्स एयमझु णो आढाइ जाव संचिट्ठइ। तए णं से कंडरीए पोंडरीयएणं दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणे अकामए अवस्सवसे लजाए गारवेण य पुंडरीयं रायं आपुच्छइ २ त्ता थेरेहिं सद्धिं बहिया जणवय विहारं विहरइ। तए णं से कंडरीए थेरेहिं सद्धिं किंचि कालं उग्गं उग्गेणं विहरइ. तओ पच्छा समणत्तणपरितंते समणत्तण-णिविण्णे समणत्तण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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