Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 338
________________ पुण्डरीक नामक उन्नीसवां अध्ययन - जीवन यात्रा का साफल्य ३०६ soccccccEEKRICKEKINEERIENCECREEEEEEEEEEEEEEEEEEEKREKORIEEEEEEE जागरमाणस्स से आहारे णो सम्मं परिणमइ। तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया उज्जला जाव दुरहियासा पित्तज्जरपरिगय सरीरे दाहवक्कंतीए विहरइ। ___ भावार्थ - अनगार पुंडरीक द्वारा कालातिक्रान्त-जिसके खाने का समय व्यतीत हो गया हो, वैसे पर्युषित-बासी शीतल, रूक्ष आहार-पानी का सेवन करते रहने से एक दिन मध्य रात्रि के समय, जब वह धर्म जागरणा-धर्मानुचिंतन कर रहा था, उस समय उसके शरीर में तीव्र यावत् असह्य पित्त ज्वर जनित घोर दाह उत्पन्न हुआ। . . जीवन यात्रा का साफल्य (२८) तए णं से पुंडरीए अणगारे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कार परक्कमे करयल जाव एवं वयासी-णमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं। णमोत्थुणं थेराणं भगवंताणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसयाणं। पुव्विं पि य णं मए थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जाव मिच्छादसणसल्लेणं पच्चक्खाए जाव आलोइय पडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा सव्वट्ठसिद्धे उववण्णे। तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। भावार्थ - तदनंतर जब अनगार पुंडरीक अस्थिर, निर्बल, अशक्त पौरुष-पराक्रम रहित हो गया तब उसने दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर अंजलि बांधे यों कहा - सिद्धि प्राप्त अरहंत भगवंतों को, मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक स्थविर भगवंतों को नमस्कार हो। मैंने पहले स्थविर भगवंतों के समीप समस्त प्राणातिपात आदि का प्रत्याख्यान किया था यावत् मिथ्यादर्शन शल्य आदि अठारह पापों का त्याग किया था यावत् उसने शरीर का ममत्व मिटाकर आलोचना, प्रतिक्रमण कर यथा समय काल धर्म को प्राप्त किया। वह सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ से अपना आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में सिद्धिप्राप्त करेगा यावत् समस्त दुःखों का अंत करेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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