Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SOCIEGORRECOGGEEEEEEEEEEaccccccccccccccccccccccccccx
भावार्थ - इस प्रकार ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन हैं, जो प्रतिदिन एक-एक अध्ययन पढ़ने से उन्नीस दिनों में समाप्त होते हैं।
उवणय गाहाउ - वाससहस्सं पि जई काऊणं संजमं सुविउलं पि। अंते किलिट्ठभावो ण विसुज्झइ कंडरीउव्व॥१॥ अप्पेण वि कालेणं केइ जहागहियसील सा मण्णा। साहिति णिययकज्जं पुंडरीय महारिसिव्व जहा॥२॥
॥ एगूणवीसइमं अज्झयणं समत्तं॥
॥ पढमो सुयक्खंधो समत्तो। भावार्थ - सहस्त्रों वर्ष पर्यंत भी सुविपुल-आचार नियमोपनियम सहित संयम का पालन करते हुए भी यदि अंत में क्लिष्ट भाव-दूषित आचार में साधक गिर जाता है तो वह कंडरीक की तरह विशुद्ध नहीं हो पाता।। १॥
कोई साधक थोड़े समय तक भी अपने द्वारा गृहीत शील एवं श्रमण पर्याय का भली-भांति पालन करता है, तो वह पुंडरीक की तरह अपना कार्य जीवन का लक्ष्य सिद्ध कर लेता है॥२॥
॥ उन्नीसवां अध्ययन समाप्त॥ ॥ प्रथम श्रुतस्कन्ध समाप्त॥
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