Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
पुण्डरीक नामक उन्नीसवां अध्ययन - युवराज कंडरीक प्रव्रजित २६६ seasesasacesiccccccccccccaseseseseeeeeseseseseseseseseseReseResesesesear
sareewala+KE+REEKRIDABALIRI
राजा पुंडरीक द्वारा श्वावक धर्म स्वीकार
तए णं थेरा अण्णया कयाइ पुणरवि पुंडरिगिणीए रायहाणीए णलिणवणे उज्जाणे समोसढा। पुंडरीए राया णिग्गए कंडरीए महाजणसई सोच्चा जहा महब्बलो जाव पज्जुवासइ। थेरा धम्म परिकहेंति पुंडरीए समणोवासए जाए जाव पडिगए।
भावार्थ - तदनंतर फिर. कभी, एक समय स्थविर भगवंत का पुंडरिकिणी राजधानी में आगमन हुआ। वे नलिनीवन नामक उद्यान में ठहरे। राजा पुंडरीक उनके दर्शन-वंदन हेतु गया। कंडरीक भी बहुत से लोगों से स्थविर भगवंत का आगमन सुनकर यावत् महाबल की तरह उनके वंदन-नमन हेतु गया, उमकी पर्युपासना, सान्निध्य लाभ किया। स्थविर भगवंत ने धर्मोपदेश दिया। राजा पुंडरीक श्रमणोपासक बना यावत् वापस लौट आया।
.... युवराज कंडरीक प्रव्रजित
... तए णं कंडरीए उट्ठाए उढेइ २ त्ता जाव से जहेयं तुब्भे वयह जं णवरं पुंडरीयं रायं आपुच्छामि तए णं जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया!
भावार्थ - तत्पश्चात् युवराज कंडरीक उठा यावत् उसले श्रमण भगवंतों से निवेदन कियाजैसा आप फरमाते हैं, वही सत्य है, संसार वैसा ही है-त्याज्य है। मैं राजा पुंडरीक से अनुज्ञा प्राप्त करूँगा यावत् दीक्षा ग्रहण करूँगा। स्थविर भगवंत बोले-देवानुप्रिय! जिससे तुम्हारी आत्मा को सुख पहुँचे, वैसा करो।
(८) तए णं से कंडरीए जाव थेरे वंदइ णमंसइ वं० २ त्ता (थेराण) अंतियाओ' पडिणिक्खमइ २ त्ता तमेव चाउघंटं आसरहं दुरूहइ जाव पच्चोरुहइ जेणेव पुंडरीए राया तेणेव उवागच्छइ २त्ता करयल जाव पुंडरीयं एवं वयासी-एवं खलु देवा०! मए थेराणं अंतिए (जाव) धम्मे णिसंते से धम्मे अभिरुइए।तएणं देवा०! जाव पव्वइत्तए।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org