Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२६८
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
आयाम युक्त है यावत् वह प्रत्यक्ष देवलोक जैसी है, अत्यंत आलादप्रद सुंदर और आकर्षक है। पुंडरीकिणी नगरी के उत्तर पूर्वी दिशा भाग में नलिनीवन नामक उद्यान था। उद्यान का वर्णन औपपातिक सूत्रानुसार ग्राह्य है।
राजामहापद्म : दीक्षा, सिद्धि तत्थ णं पुंडरिगिणीए रायहाणीए महापउमे णामं राया होत्था। तस्स णं पउमावई णामं देवी होत्था। तस्स णं महापउमस्स रण्णो पुत्ता पउमावईए देवीए अत्तया दुवे कुमारा होत्था तं जहा-पुंडरीए य कंडरीए य सुकुमालपाणिपाया। पुंडरीए जुवराया।
___ भावार्थ - पुंडरीकिणी राजधानी का महापद्म नामक राजा था। उसकी रानी का नाम पद्मावती था। उसकी कोख से पुंडरीक और कंडरीक नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। वे हाथ पैर · आदि सभी अंगों से सुंदर एवं सुकुमार थे। पुंडरीक युवराजपद पर अधिष्ठित था। .
(४)
तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं। भावार्थ - उस काल, उस समय स्थविर भगवंत धर्मघोष का आगमन हुआ।
. महापउमे राया णिग्गए, धम्मं सोच्चा पुंडरीयं रजे ठवेत्ता पव्वइए पुंडरीए राया जाए कंडरीए जुवराया। महापउमे अणगारे चोदसपुव्वाइं अहिजइ, तए णं थेरा बहिया जणवय विहारं विहरंति। तए णं से महापउमे बहूणि वासाणि जाव सिद्धे। ___ भावार्थ - राजा महापद्म उनके दर्शन-वंदन हेतु आया। धर्मश्रवण किया। उसे वैराग्य हुआ। उसने युवराज पुंडरीक को राज्याधिष्ठित किया एवं स्वयं दीक्षित हो गया। पुंडरीक राजा. हुआ, कंडरीक युवराज बना। अनगार महापद्म ने चवदह पूर्वो का अध्ययन किया।
स्थविर धर्मघोष बाहरी जनपदों में विहरणशील रहे। मुनि महापद्म ने बहुत वर्ष पर्यंत साधु जीवन.का पालन किया यावत् वह सिद्ध हुआ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org