Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
SDEVTAMIRITERATUBEOHINORITIERRIDA/BOOREOVISIODIGIGRAN REGORIAGempenmepassessenaspaGUIDAMBEIPRITED BreamernmermumernamerecamerDEmaceuterlineTEBDayataraseDRUrosERODEBOBOOBrDreEMBEmerootermanee
रहने लगा। वह सिंह गुफा चोरपल्ली के पाँच सौ चोरों का आधिपत्य करने, लगा। यहाँ विजय चोर विषयक चोरी के कार्यकलापों का वर्णन योजनीय है यावत् वह राजगृह नगर के दक्षिण पूर्वी जनपद में लूटमार करता हुआ यावत् लोगों को धन एवं घर से रहित करता हुआ, पापकृत्य में संलग्न रहा। धन्य सार्थवाह को लूटने की योजना
. (२०) तए णं से चिलाए चोर सेणावई अण्णया कयाइ विपुलं असणं ४ उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ तओ पहाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असणं ४ सुरं च जाव पसण्णं च आसाएमाणे ४ विहरइ जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूवपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता एवं वयासी -
भावार्थ - चोर सेनापति चिलात ने किसी एक दिन प्रचुर अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य तैयार करवाए। पाँच सौ चोरों को आमंत्रण भेजा। तत्पश्चात् वह स्नान, नित्य नैमित्तिक बलिकर्म आदि से निवृत्त हुआ। ___ पाँच सौ चोरों के साथ भोजन मंडप में विपुल अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य, सुरा यावत् विभिन्न प्रकार की मदिराओं का आस्वादन लिया। भोजन करने के पश्चात् उन पाँच सौ चोरों को धूप, गंध, मालाओं, अलंकारों से सत्कारित, सम्मानित किया एवं उनसे इस प्रकार कहा। .
(२१)
एवं खलु देवाणुप्पिया! रायगिहे णयरे धण्णे णामं सत्थवाहे अड्ढे तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्डं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा णामं दारिया (यावि) होत्था अहीणा जाव सुरूवा, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! धणस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुंपामो, तुन्भं विपुले धणकणग जाव सिलप्पवाले ममं सुंसुमा दारिया। तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स० पडिसुणेति। - शब्दार्थ - विलुपामो - लूटें।
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