Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२८४
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SearcoaNEGEEKECEICKETERecccccccRRIGEEKECEREKKEEEEEEEEK की सी ध्वनि करता हुआ सिंह गुफा-चोरपल्ली से बाहर निकला। राजगृह नगर के निकट आया
और उससे न अधिक दूर न अधिक समीप एक गहन वन में प्रविष्ट हुआ तथा दिन छिपने की प्रतीक्षा करता रहा।
(२३) तए णं से चिलाए चोरसेणावई अद्धरत्तकाल समयंसि णिसंतपडिणिसंतंसि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं माइयगोमुहिएहिं फलएहिं जाव मूइयाहिं उरुघंटियाहिं जेणेव रायगिहे णयरे पुरथिमिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ० उदगवत्थिं पसमुसई आयंते चोक्खे परमसुइभूए तालुग्घाडणिविजं आवाहेइ २ त्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं अच्छोडेइ २ ता कवाडं विहाडेइ २ त्ता रायगिहं अणुप्पविसइ २ त्ता महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणे २ एवं वयासी।
शब्दार्थ - मूइयाहिं - स्वर रहित, उदगवत्थिं - पानी की मशक, आयते - आचमन किया, चोक्खे - स्वच्छ, तालुग्घाडणिविजं - तालोद्घाटनी विद्या, अच्छोडेइ - छिड़का। ____ भावार्थ - तब चोर सेनापति चिलात आधी रात के समय, जब चारों और खामोशी थी, पाँच सौ चोरों के साथ रीछ के बालों से आच्छादित गोमुखाकार पट्टियों से देह को रक्षित करते हुए यावत् अपनी बड़ी-बड़ी घंटियों को निःशब्द कर राजगृह नगर के पूर्वी द्वार पर पहुंचा। पहुँच कर पानी की मशक ली। उससे आचमन किया, स्वच्छ और परम शुद्ध हुआ। ऐसा कर तालोद्घाटिनी विद्या का आह्वान किया। राजगृह नगर के द्वार के किवाड़ को पानी से सिंचित किया। फिर किवाड़ को खोलकर नगर में प्रविष्ट हुआ। उच्चस्वर से उद्घोषित करने लगा।
धन्य सार्थवाह के घर पर धावा
___ (२४) एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! चिलाए णामं चोर सेणावई पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागए धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहं घाउकामे। तं जो णं णवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे से णं णिग्गच्छउ त्तिकटु जेणेव धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छड २ ता धण्णस्स गिह विहाडेड।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org