Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भावार्थ - धन्य सार्थवाह अपने पांचों पुत्रों के साथ तीव्रगति से सांस छोड़ता हुआ, दुःख पूर्ण स्वर में रुदन-क्रंदन और विलाप करता हुआ जोर-जोर से सिसकियाँ भरता हुआ, बहुत समय तक आंसू बहाता रहा। आहार-पानी के अभाव में प्राण त्याग का विचार
(३५) तए णं से धण्णे सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्टे चिलायं तीसे अगामियाए सव्वओ समंता परिधाडेमाणे तण्हाए छुहाए य परब्भं (रद्धं)ते समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता उदगस्स मग्गणगवेसणं करेइ २ त्ता संते तते परितंते णिव्विण्णे (समाणे) तीसे अगामियाए (अडवीए) उदगस्स मग्गण गवसणं करेमाणे णो चेव णं उदगं आसाएइ।
__ भावार्थ - धन्य सार्थवाह अपने पांचों पुत्रों के साथ दुर्गम जंगल में चिलात के पीछे दौड़ते रहने के कारण प्यास और भूख से अत्यंत पीड़ित हो गया था। उस दुर्गम, घोर वन में चारों ओर जल की खोज करने लगा। उस अगम्य वन में बहुत खोजने पर भी उसे पानी नहीं मिला। वह बहुत ही श्रांत, खिन्न एवं विषाद युक्त हो गया।
तए णं उदगं अणासाएमाणे जेणेव सुंसुमा जीवियाओ ववरोविया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता जेहें पुत्तं धण्णे (स०) सहावेइ २ त्ता एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता! सुंसुमाए दारियाए अट्ठाए चिलायं तक्करं सव्वओ समंता परिधाडेमाणा तण्हाए छुहाए य अभिभूया समाणा इमीसे अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गणगवेसणं करेमाणा णो चेव णं उदगं आसादेमो। तए णं उदगं अणासाएमाणा णो संचाएमो रायगिहं संपावित्तए। तण्णं तुम्भे ममं देवाणुप्पिया! जीवियाओ ववरोवेह (मम) मंसं च सोणियं च आहारेह० तेणं आहारेणं अव(हिट्ठा)थद्धा समाणा तओ पच्छा इमं अगामियं अडविं णित्थरिहिह रायगिहं च संपाविहह मित्तणाइ० अभिसमागच्छिहिह अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह।
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