Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(११) तत्थ णं सीहगुहाए चोरपल्लीए विजय णामं चोरसेणावई परिवसइ अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ समुट्ठिए बहुणगर-णिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी साहसीए सहवेही। से णं तत्थ सीहगुहाए चोर पल्लीए पंचण्डं चोरसयाणं आहेवच्चं जाव विहरइ।
शब्दार्थ - अहम्मकेऊ - अधर्म की ध्वजा।
भावार्थ - उस सिंह गुफा नामक चोर पल्ली में विजय नामक चोरों का सरदार रहता था। वह बड़ा ही अधार्मिक यावत् घोर हिंसक था, मानों वह पाप की ऊंची ध्वजा हो। बहुत नगरों में उसके चौर्य कौशल का यश व्याप्त था। वह बहादुर, दृढ़ प्रहारी, दुःसाहसी एवं शब्द सुनकर बाण चलाने में निपुण था। उस सिंह गुफा नामक-चोर पल्ली में पांच सौ चोरों का आधिपत्य करता हुआ रहता था।
(१२) तए णं से विजय तक्करे (चोर) सेणावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायावगारीण य अणधारगाण य बालघायगाण य वीसंभघायगाण य जूयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसिं च बहूणं छिण्णभिण्ण बाहिराहयाणं कुडंगे यावि होत्था।
शब्दार्थ - गंठिभेयगाण - गांठ काटने वालों का, संधिच्छेयगाण - सेंध लगाने वालों का, चोरी के लिए दीवार में छेद करने वाले, अणधारगाण - ऋणधारकों का, वीसंभ - विश्वास, खंडरक्खाण - भूमाफियों का, छिण्णभिण्ण बाहिराहयाणं - हाथ, पैर, कान, नाक आदि काटकर देश-निर्वासितों का, कुडंगे - आश्रयदाता। ____ भावार्थ - वह चोर सेनापति विजय तस्कर बहुत से चोरों, परस्त्रीगामियों, ग्रंथि भेदकों, सेंधमारों-भित्तिछेदकों, राज्यापराधियों, कर्जदारों, बाल हत्यारों, विश्वासघातियों, जुआरियों, भूमाफियों तथा हस्त-पाद-कर्ण-नासिक छेद पूर्वक देशनिष्कासितों के लिए शरणदाता था।
(१३) तए णं से विजय (तक्करे) चोर सेणावई रायगिहस्स दाहिणपुरत्थिमं जणवयं
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