Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र proce
नामक बंदरगाह था, वहाँ पहुँचे। गाड़ी - गाड़ों को खोला। जहाज को सुसज्ज - तैयार किया। उन उत्तम शब्द, स्पर्श, रूप रस, गंध विषयक पदार्थों को तथा ईंधन, तृण, पानी चावल, आटा तथा घृत यावत् और भी बहुत सी यात्रोपयोगी वस्तुएं जहाज में रखी ।
२६२ Xeece
(१७)
भरित्ता दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता पोयवहणं लंबेति २ त्ता ताई उक्किट्ठाई सद्दफरिसरसरूवगंधाई एगट्टियाहिं कालियदीवं उत्तारेंति २ त्ता जहिं जहिं च णं ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठति वा तुयहंति वा तहिं २ च णं ते कोडुंबिय पुरिसा ताओ वीणाओ य जाव विचित्त वीणाओ य अण्णाणि बहूणि सोइंदिय पाउग्गाणि य दव्वाणि समुद्दी (दी) रेमाणा चिट्ठति तेसिं च परिपेरतेणं पालए ठवेंति० णिच्चला णिप्फंदा तुसिणीया चिट्ठति ।
शब्दार्थ - तुयहंति - थकान मिटाने हेतु भूमि पर लोटना, समुद्दीरेमाणा - मधुरं ध्वनि से बजाते हुए, परिपेरंतेणं - चारों ओर, पासए
जाल ।
भावार्थ - जहाज को भरकर दक्षिण दिशा से चलने वाली अनुकूल हवा के साथ आगे बढ़ते हुए वे कालिक द्वीप पहुँचे। वहाँ जहाज के लंगर डाले। उन उत्तम शब्द, रस, स्पर्श, रूप गंध युक्त पदार्थों को नौकाओं से कालिक द्वीप पर उतारा फिर जहाँ-जहाँ वे घोड़े, बैठते, सोते, खड़े होते, जमीन पर लोटते, वहाँ-वहाँ वे कौटुंबिक पुरुष यावत् विविध प्रकार की वीणाओं तथा अन्य बहुत से श्रुतिप्रिय तथा कर्ण प्रिय वाद्यों को मधुर ध्वनि से बजाने लगते। वहाँ चारों और जाल बिछा दिए। वे निश्चल, निष्पंद, हलन चलन रहित, चुपचाप वहाँ स्थित हुए।
(१८)
जत्थ जत्थ ते आसा आसयंति वा जाव तुयहंति तत्थ २ णं ते कोडुंबिया बहूणि किण्हाणि य ५ कट्ठकम्माणि य जाव संघाइमाणि य अण्णाणि य बहूणि चक्खिदियपाउग्गाणि य दव्वाणि ठवेंति तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेंति २ ता णिच्चला णिप्फंदा तुसिणीया चिट्ठति ।
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