Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२७०
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා __घ्राणेन्द्रिय के वशवर्ती लोग अगर, उत्तम, श्रेष्ठ धूप, विभिन्न ऋतुओं में उत्पन्न पुष्पों की मालाएं तथा चंदन आदि लेप प्रभृति सुगंधमय साधनों में अनुरंजित रहते हैं और उनके सेवन में बड़ा आनंद मानते हैं॥५॥ ___घ्राणेन्द्रिय की दुर्दीतता - अपरिजेय सुरभि, लोलुपता अत्यंत दोषोत्पादक है। उदाहरणार्थ सुगंधि में आसक्त होकर जब साँप बिल से निकल पड़ता है तो वह गारुड़िकों द्वारा पकड़ लिया जाता है, कष्ट पाता रहता है॥६॥
रसनेन्द्रिय के वशीभूत जन तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल तथा मधुर खाद्य, पेय लेह्य पदार्थों के आस्वादन में मूछित बने रहते हैं, उनका उपभोग करते रहने में बड़ा सुख मानते हैं॥७॥ ।
रसनेन्द्रिय की दुर्जेयता के कारण बड़ा ही क्लेशमय दोष उत्पन्न हो जाता है। जैसे मछुए द्वारा खाद्य पदार्थ से आच्छन्न फेंका गया कांटा गले में फंस जाने से बाहर जमीन पर लाई गई मछली तड़फ-तड़फ कर प्राण गवां देती है। उसी प्रकार रसलोलुपी घोर दुःख पाते हैं॥८॥
स्पर्शनेन्द्रिय के वश में आर्त बने हुए समृद्धिशाली लोग विभिन्न ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले भोगों में अनुरंजित होते हुए उनमें रमण करते रहते हैं॥६॥ .
स्पर्शनेन्द्रिय की दुर्दमनीयता अत्यंत कष्टप्रद, दोषमय प्रतिफलित होती है। जैसे वन में स्वच्छंद विहरणशील हाथी स्पर्शनेन्द्रिय के वश में होकर जब हथिनी में मूछित, मोहाविष्ट होकर पकड़ लिया जाता है तब पराधीन होकर वह महावत के लौह के अंकुश से मस्तक में दी जाने वाली पीड़ा से दुःखित होता है॥१०॥ ___ जो सुंदर, मनोज्ञ, मधुर वीणा आदि तन्तुवाद्य, मृदंग आदि तालवाद्य तथा मुख वायु द्वारा बजाई जाने वाले बांसुरी आदि के उत्तम, मनोहर शब्दों में, ध्वनि में मूछित नहीं होते, वे श्रोत्रेन्द्रिय लोलुपता जनित कष्टमय मृत्यु नहीं पाते॥११॥
जो स्तन, जघन, मुख, हाथ, पैर तथा नेत्र सौंदर्य में गर्वान्वित विलास प्रवण नारियों में आसक्त नहीं होते, वे चक्षु-इन्द्रिय की लोलुपता से होने वाली दुःख पूर्ण मौत नहीं मरते॥१२॥
जो उत्तम श्रेष्ठ धूपादि पदार्थों, विविध ऋतुओं में प्राप्यपुष्पों की माला तथा चंदनादि लेप जनित गंध में गृद्ध-मोहाविष्ट नहीं होते, वे घ्राणेन्द्रिय लोलुपता जनित मारणांतिक कष्ट नहीं पाते॥१३॥
जो तिक्त, कषाय, अम्ल, मधुर खाद्य पेय और लेह्य पदार्थों के आस्वादन में अत्यासक्त नहीं होते, वे रसनेन्द्रिय वशार्त्तता के परिणाम स्वरूप होने वाला दुःखद मरण नहीं पाते॥१४॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org