Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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राजा कनककेतु के पास उपस्थित हुए। उन्हें हाथ जोड़ कर यावत् मस्तक पर अंजलि बांधकर नमन कर वर्धापित किया, जयनाद किया तथा घोड़े सौंपे।
तब राजा कनककेतु ने सांयात्रिक वणिकों का शुल्क माफ कर दिया, सत्कारित-सम्मानित कर विदा किया।
(२६) तए णं से कणगकेऊ राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता पडिविसजेइ।।
भावार्थ - तदनंतर राजा कनककेतु ने उस कौटुंबिक पुरुषों को, जिन्हें कालिकद्वीप भेजा था उन्हें बुलवाया, सत्कृत-सम्मानित किया एवं जाने की आज्ञा दी। । ।
. (२७) तए णं से कणगकेऊ राया आसमद्दए सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-तुब्भे णं.. देवाणुप्पिया! मम आसे विणएह। तए णं ते आसमद्दगा तहत्ति पडिसुणेति २ त्ता ते आसे बहणिं मुहबंधेहि य कण्णबंधेहि य णासाबंधेहि य वालबंधेहि य खरबंधेहि य कडगबंधेहि य खलिणबंधेहि य अहिलाणेणबंधेहि य पडियाणेहि य अंकणाहि य (वेलप्पहारेहि य) वित्तप्पहारेहि य लयप्पहारेहि य कसप्पहारेहि य छिवप्पहारेहि य विणयंति० कणगकेउस्स रणो उवणेति। ___ शब्दार्थ - विणएह - प्रशिक्षित करो, आसमद्दगा - अश्व शिक्षक, कडग - कमर, खलिण - लगाम, अहिलाणेण - जीन द्वारा, पडियाणेहि - जीन को नीचे से बांधने का चमड़े का पट्टा, अंकणाहि - लोहे आदि की गर्म शलाखों से दागकर, वित्त - बेंत, कस - कौड़ा, छिव - चमड़े का चिकना कोड़ा।
भावार्थ' - राजा कनककेतु ने अश्व शिक्षकों को बुलाया, बुलाकर कहा - देवानुप्रियो! तुम मेरे अश्वों को विनीत, शिक्षित करो। अश्व प्रशिक्षकों ने जैसी आपकी आज्ञा-यों कहकर राजाज्ञा स्वीकार की।
उन्होंने अनेक प्रकार से घोड़ों के मुंह, कान, नाक, पूंछ के बाल, खुर, कमर आदि बांधे, उनके लगामें लगाई, जीनें लगाई तथा उन्हें चमड़े के पट्टों से कमर पर बांधा, लौह आदि की
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