Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
आकीर्ण नामक सतरहवां अध्ययन - अकस्मात कालिकद्वीप पहुंचने का संयोग २६७
गर्म सलाखों से उन्हें दागा। बेंतों, लताओं, कोड़ों, चमड़े के चिकने चाबुकों से उन्हें पीटपीटकर प्रशिक्षित किया और ले जाकर राजा को सौंपा।
(२८) ... .. तए णं से कणगकेऊ ते आसमद्दए सक्कारेइ २ पडिविसजेइ। तए णं ते आसाबहूहिं मुहबंधेहि य जाव छिवप्पहारेहि य बहूणि सारीरमाणसाइं दुक्खाई पावेंति। -
भावार्थ - तदनंतर राजा कनककेतु ने उन अश्व प्रशिक्षकों का सत्कार सम्मान किया। फिर उन्हें विदा किया। ____ इस प्रकार वे घोड़े मुख बंध यावत् चमड़े के चाबुक आदि के प्रहार से शारीरिक एवं मानसिक कष्ट पाते रहे। - एवामेव समणाउसो! जो अम्हं णिग्गंथो वा णिग्गंथी वा पव्वइए समाणे इटेसु सद्दफरिसरसरूवगंधेसु सजइ रज्जइ गिज्झइ मुज्झइ अज्झोववजइ से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं जाव सावियाण य हीलणिजे जाव अणुपरियट्टिस्सइ।
भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमणो! जो साधु या साध्वी प्रव्रजित होकर शब्द-स्पर्श-रस-रूपगंध रूप भोगों में आसक्त, अनुरक्त, लोलुप, मोहित एवं संलग्न होते हैं, वे इस लोक में बहुत से श्रमण-श्रमणियों यावत् साधु-साध्वियों द्वारा अवहेलनीय, तिरस्करणीय होते हैं यावत् वे संसार में भटकते रहते हैं।
(३०) गाहा - कलरिभियमहुरतंतीतलतालवंसक उहाभिरामेसु। . सद्देसु रजमाणा रमंति सोइंदियवसट्टा॥१॥ सोइंदियदुद्दतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। .. . दीविगरुयमसहंतो वह बंधं तित्तिरो पत्तो॥२॥ थणजहणवयणकरचरण णयण गम्वियविलासियगईसु। रूवेसु रजमाणा रमंति चक्खिंदियवसट्टा॥३॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org