Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आकीर्ण नामक सतरहवां अध्ययन - अकस्मात कालिकद्वीप पहुँचने का संयोग
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भावार्थ - आयुष्मन् श्रमणो! जो निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थिणी गण शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध में आसक्त नहीं होते हैं, वे इस लोक में बहुत से श्रमणों-श्रमणियों-श्रावकों-श्राविकाओं के लिए. अर्चनीय-पूजनीय होते हैं यावत् संसार रूपी भयानक जंगल को पार कर जाते हैं।
. . (२४) तत्थ णं अत्थेगइया आसा जेणेव उक्किट्ठा सद्दफरिसरसरूवगंधा तेणेव उवागच्छंति २ ता तेसु उक्किटठेसु सद्देसु ५ मुच्छिया जाव अज्झोववण्णा आसेविउं पयत्ता यावि होत्था। तए णं ते आसा ते उक्किठे सद्दे ५ आसेवमाणा तेहिं बहूहिं कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु य बज्झंति। .
- भावार्थ - उनमें से कतिपय घोड़े, जहाँ उत्तम शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध पूर्ण पदार्थ थे, वहाँ गए। वे उनमें मोहित यावत् आसक्त हो गए, उनका सेवन करने में प्रवृत्त हुए। उन उत्तम शब्द-स्पर्श-रस-रूप एवं गंधमय पदार्थों का आस्वाद लेते हुए उन घोड़ों में कुछेक की गर्दनें कुछेक के पैर फंस गए। कौटुंबिक पुरुषों ने उन्हें पकड़ लिया।
___ (२५) -- तए णं ते कोडुंबिया ते आसे गिण्हंति २ त्ता एगट्ठियाहिं पोयवहणे संचारेंति २ ता तणस्स कट्ठस्स जाव भरेंति। तए णं ते संजुत्ता (णावावाणियगा) दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीर पोयपणे तेणेव उवागच्छति २ त्ता पोयवहणं लंबेंति २ त्ता ते आसे उत्तारेंति २ त्ता जेणेव हत्थिसीसे णयरे जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति २ त्ता करयल जाव वद्धावेंति० ते आसे उवणेति। तए णं से कणगकेऊ राया तेसिं संजुत्तावाणियगाणं उस्सुक्कं वियरइ २ त्ता सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता पांडेविसज्जेइ।
भावार्थ - तदनंतर उन कौटुबिक पुरुषों ने उन घोड़ों को अपने साथ लिया, नौकाओं में डाला फिर जहाज पर चढ़ाया। जहाज में तृण, काष्ठ यावत् यात्रोपयोगी आवश्यक सामान भरा। फिर वे सांयात्रिक नौका वणिक दक्षिण दिशा से चलती हुई अनुकूल वायु के साथ आगे बढ़ते हुए गंभीर नामक बंदरगाह पर पहुँचे। जहाज के लंगर डाले। घोड़ों को उतारा। हस्तिशीर्षनगर में
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