Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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__ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Sasaaraaaaaaaaaaaaaaaaaacococccccccccccccccccccee - देवानुप्रिये! तुम क्या करना चाहती हो? तब द्रौपदी देवी ने पांडवों से कहा - देवानुप्रियो! यदि आप संसार-भय से उद्विग्न यावत् दुःखित होकर प्रव्रजित होना चाहते हैं तो फिर मेरे लिए क्या अवलम्बन यावत् सहारा होगा? मैं भी जन्म-मरण के भय से उद्विग्न हूँ। आपके साथ ही प्रव्रज्या लूंगी। पांडवों की सपत्नीक प्रव्रज्या
(२१९) तए णं ते पंच-पंडवा० पंडुसेणस्स अभिसेओ जाव राया जाए जाव रजं पसाहेमाणे विहरइ। तए णं ते पंच-पंडवा दोवई य देवी अण्णया कयाई पंडुसेणं रायाणं आपुच्छंति। तए णं से पंडुसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया! णिक्खमणाभिसेयं जाव उवट्ठवेह परिससहस्सवाहिणीओ सिवियाओ उवट्ठवेह जाव पच्चोरुहंति जेणेव थेरा जाव आलित्ते णं जाव समणा जाया चोइस्स पुव्वाइं अहिजंति २ त्ता बहूणि वासाणि छट्टट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति।
भावार्थ - तत्पश्चात् पांचों पांडवों ने युवराज पांडुसेन का राज्याभिषेक किया यावत् उसने राज्य संभाला यावत् राज्य का पालन करता हुआ वह सुखपूर्वक रहने लगा।
किसी समय पांचों पाडवों एवं द्रौपदी ने राजा पांडुसेन से प्रव्रजित होने की अनुज्ञा प्राप्त की। पांडुसेन राजा ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा-देवानुप्रियो! शीघ्र ही निष्क्रमणाभिषेकदीक्षा-समारोह का आयोजन करो यावत् एक हजार पुरुषों द्वारा वहनीय शिविकाओं की व्यवस्था करो यावत् उन्होंने राजाज्ञा का पालन कर, पुनः सेवा में निवेदन किया। _पांचों, पांडव स्थविर भगवंतों की सेवा में उपस्थित हुए यावत् उन्होंने उनसे निवेदन किया कि यह संसार दुःखों से प्रज्वलित है, हम प्रव्रजित होकर उससे छुटकारा पाना चाहते हैं यावत् पांचों पांडवों ने मुंडित दीक्षित होकर श्रामण्य स्वीकार किया।
• उन्होंने चवदह पूर्वो का अध्ययन किया। वे बहुत वर्षों तक द्विदिवसीय, त्रिदिवसीय, चतुर्दिवसीय, पंचदिवसीय, अर्द्धमासिक एवं मासिक आदि तपश्चरणों द्वारा आत्मानुभावित होते हुए विहरणशील रहे।
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