Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - पाण्डवों को पुत्र-प्राप्ति २४५ xcccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccs
वह क्रमशः बड़ा हुआ, बहत्तर कलाओं में पारंगत हुआ यावत् भोग समर्थ युवा हुआ यावत् उसे पांडवों ने युवराज पद पर अभिषिक्त किया यावत् वह अपने माता-पिता की छत्रछाया में सुख पूर्वक रहने लगा।
(२१७) थेरा समोसढा परिसा णिग्गया। पंडवा णिग्गया धम्म सोच्चा एवं वयासीजं णवरं देवाणुप्पिया! दोवई देविं आपुच्छामो पंडुसेणं च कुमारं रजे ठावेमो तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वयामो। अहासुहं देवाणुप्पिया!
. भावार्थ - उस काल, उस समय स्थविर भगवंतों का पांडु मथुरा में आगमन हुआ। धर्म सुनने के लिए जन समुदाय, आया। पांडव भी आए। धर्मोपदेश सुना। पांडवों ने धर्मोपदेश सुनकर स्थविर भगवंतों से निवेदन किया-देवानुप्रिय! हमें संसार से विरक्ति हुई है। अतः द्रौपदी देवी से पूछ कर पाण्डुसेनकुमार को राज्य सौंप कर, हम आपके पास मुंडित होकर, प्रव्रजित होना चाहते हैं। . स्थविर भगवंतों ने कहा-देवानुप्रियो! जिससे तुम्हें सुख उपजे वैसा करो।
(२१८) तए णं से पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति २ ता दीवई देविं सद्दावेंति २ ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए! अम्हेहिं थेराणं अंतिए धम्मे णिसंते जाव पव्वयामो, तुमं णं देवाणुप्पिए! किं करेसि? तए णं सा दोवई देवी ते पंच-पंडवे एवं वयासी-जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया! संसारभउव्विगा जाव पव्वयह मम के अण्णे आलंबे वा जाव भविस्सइ? अहं पि य णं संसारभउविग्गा देवाणुप्पिएहिं सद्धिं पव्वइस्सामि।
भावार्थ - तब पांचों पांडव अपने भवन में आए। द्रौपदी देवी को बुलाया और कहा - देवानुप्रिये ! हमने स्थविर भगवंतों के पास धर्म सुना है। हमें वैराग्य हुआ यावत् हम प्रव्रजित होना चाहते हैं।
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