Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आकीर्ण नामक सतरहवां अध्ययन - अकस्मात कालिकद्वीप पहुँचने का संयोग २५५ SROCCORDERDERGRECORDEDGEOGORGEOGaDERGEDEEGar संजुत्तणावावाणियगा य जेणेव से णिजामए तेणेव उवागच्छंति २ त्ता एवं वयासी-किण्णं तुमं देवाणुप्पिया! ओहयमणसंकप्पा जाव झियायसि? तए णं से णिजामए ते बहवे कुच्छिधारा य ४ एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! णट्ठमईए जाव अवहिए त्तिकदृ तओ ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि।
भावार्थ - उस समय नौका चालन में निर्यामक के सहयोगी विभिन्न कार्यवाहक पुरुष तथा सांयात्रिक व्यापारी, जहाँ वह निर्यामक था, वहाँ आए और बोले-देवानुप्रिय! तुम्हारा मन व्यथित और खिन्न क्यों है? तुम आर्तध्यान क्यों कर रहे हो?
इस पर निर्यामक ने उन सबसे कहा - देवानुप्रियो! मेरी बुद्धि जरा भी इस भीषण तूफान के अवसर पर काम नहीं कर रही है यावत् तूफान इस पोत को कहाँ लिए जा रहा है, मुझे मालूम नहीं। यही सोचकर मेरा मन दुःखित है यावत् मैं चिंतातुर हूँ।
तए णं ते कण्णधारा तस्स णिजामयस्संतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म भीया० हाया कयबलिकम्मा करयल बहूणं इंदाण य खंदाण य जहा मल्लिणाए जाव उवायमाणा २ चिट्ठति।
शब्दार्थ - उवायमाणा - मनौती करते हुए।
भावार्थ - निर्यामक से यह सुनकर वे सभी लोग भयभीत एवं उद्विग्न हो गए। उन्होंने स्नान किया, मांगलिक कृत्य किए। हाथ जोड़, मस्तक पर अंजलि किए बहुत से इन्द्र देवों, स्कन्धों आदि को स्मरण करते हुए मनौती मनाने लगे। यहाँ का विस्तृत वर्णन मल्लि अध्ययन से ग्राह्य है।
अकस्मात कालिकद्वीप पहुंचने का संयोग
तए णं से णिजाए तओ मुहत्तंतरस्स लद्धमईए ३ अमूढदिसाभाए जाए यावि होत्था। तए णं से णिजामए ते बहवे .कुच्छिधारा य ४ एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणुप्पिया! कालियदीवंतेणं संवूढा। एस णं कालियदीवे आलोक्कड़।
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