Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन राजा पद्मनाभ को चुनौती
Seeeeeee-8566666666esOOSE द्रौपदी देवी का हरण करवाया है? खैर जाने दो, हुआ सो हुआ । अब तुम द्रौपदी देवी को कृष्ण वासुदेव को सौंप दो अथवा युद्ध के लिए सुसज्ज होकर बाहर निकलो । कृष्ण वासुदेव द्रौपदी देवी को लेने, पाँचों पांडवों सहित अभी-अभी आए हैं।
(१८१)
-
तए णं से दारुए सारही कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे (जाव) पडिसुणेइ २ त्ता अवरकंकं रायहाणि अणुपविसइ २ त्ता जेणेव पउमणाभे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी एस णं सामी ! मम विणय पडिवत्ती इमा अण्णा मम सामिस्स समुहाणत्ति-त्तिकट्टु आसुरुत्ते वामपाएणं . पायपीढं अ (ण) वक्कमइ २ त्ता कोंतग्गेणं लेहं पणामइ० जाव कूवं हव्वमागए । शब्दार्थ - समुहाणत्ति - आज्ञा, पणामइ - अर्पित किया।
भावार्थ कृष्ण वासुदेव द्वारा यों कहे जाने दारुक सारथी ने प्रसन्नता यावत् हर्ष के साथ स्वीकार किया और वह अमरकंका राजधानी में प्रविष्ट हुआ। हाथ जोड़ कर, मस्तक नवाकर वर्धापित किया, जयनाद किया और कहा - यह मेरी विनय प्रतिपत्ति-न -नम्रता पूर्ण शिष्टाचार है । आपको निवेदित करने हेतु मेरे स्वामी की आज्ञा दूसरी है। तदनुसार उसने रोष पूर्वक राजा पद्मनाभ के पादपीठ के ठोकर मारी । भाले की नोंक पर खोंसा हुआ पत्र उसे अर्पित किया यावत् उसने कृष्ण वासुदेव का पूरा आदेश कह सुनाया और बोला - वे द्रौपदी देवी को लेने यहाँ आए हुए हैं।
-
Jain Education International
(१८२)
तए णं से पउमणाभे दारुएणं सारहिणा एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते तिवलिं
भिउंडिं णिडाले साहट्टु एवं वयासी णो अप्पिणामि णं अहं देवाणुप्पिया! कण्हस्स वासुदेवस्स दोवई । एस णं अहं सयमेव जुज्झसज्जो णिग्गच्छामि त्तिकट्टु दारुयं सारहिं एवं वयासी केवलं भो ! रायसत्थेसु दूये अवज्झे त्तिकट्टु असक्कारिय असम्माणिय अवदारेणं णिच्छुभावेइ ।
शब्दार्थ - णिडाले. मारने योग्य ।
ललाट पर, रायसत्थेसु - राजनीति शास्त्रों में, अवज्झे
-
-
२२५
-
For Personal & Private Use Only
-
-
-
न
www.jainelibrary.org