Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२२८
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
कण्हे वासुदेवे ते पंच-पंडवे एवं वयासी - कहण्णं तुन्भे देवाणुप्पिया! पउमणाभेण रण्णा सद्धिं संपलग्गा? तए णं ते पंच-पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा सण्णद्ध० रहे दुरूहामो २ त्ता जेणेव पउमणाभे जाव पडिसेहेइ।
शब्दार्थ - पडिसेहेइ - रोक दिया, अत्थामा - बल रहित।
भावार्थ - तब राजा पद्मनाभ ने शीघ्र ही पाँचों पांडवों के अश्वों को घायल कर दिया। उनकी उत्तम ध्वजपताकाओं को गिरा डाला। उनको एक दिशा से दूसरी दिशा में जाने से - जहाँ का तहाँ रोक दिया। इस प्रकार पद्मनाभ राजा द्वारा यों पीड़ित, पराभूत किए जाने पर यावत् जहाँ का तहाँ रोक दिए जाने पर पांडव स्वयं को अस्थिर यावत् दुर्बल महसूस करने लगे। ___'अब यहाँ टिक पाना संभव नहीं है', यों सोचकर जहाँ कृष्ण वासुदेव थे, वहाँ चले
आए। कृष्ण वासुदेव ने पाँचों पांडवों से कहा - देवानुप्रियो! तुम पद्मनाभ राजा के साथ किस प्रकार युद्ध लड़ने में संलग्न हुए?
तब पाँचों पांडवों ने कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा - देवानुप्रिय! हम आपकी आज्ञा प्राप्त कर कवचों से सज्जित हुए, रथों पर आरूढ हुए। जहाँ राजा पद्ममाभ था, वहाँ पहुँचे, हमने उसको इन शब्दों में ललकारा - “आज हम ही होंगे या पद्मनाभ राजा होगा" यावत् लड़े। इस प्रकार पांडवों ने सारी बात बतलाते हुए कहा कि राजा पद्मनाभ ने हमें जहाँ का तहाँ रोक दिया।
(१८७) तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच-पंडवे एवं वयासी - जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया! एवं वयंता - अम्हे णो पउमणाभे राय त्तिक१ पउमणाभेणं सद्धिं संपलग्गंता तो णं तुब्भे णो पउमणाभे हयमहिय पवर जाव पडिसेहंते तं पेच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! अहं णो पउमणाभे रायत्तिकटु पउमणाभेणं रण्णा सद्धिं जुज्झामि रहं दुरूहइ २ ता जेणेव पउमणाभे राया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सेयं गोखीरहारधवलं तणसोल्लियंसि दुवार कुंदेंदु-सण्णिगासं णिययस्स बलस्स हरिसजणणं रिउसेण्ण विणासकर पंचजण्णं संखं परामुसइ २ ता मुहवाय पूरियं करेइ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org