Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SwaceOOOOOOOOOOOOOOODecemadcasCERamecccccccbook
भावार्थ - दारुक सारथी का यह कथन सुनकर राजा पद्मनाभ बहुत क्रोध में आ गया। उसने ललाट पर त्रिवलित भृकुटी तानकर कहा - देवानुप्रिय! मैं कृष्ण वासुदेव को द्रौपदी नहीं दूंगा। मैं स्वयं ही युद्ध के लिए सुसज्जित होकर आ रहा हूँ। फिर वह दारुक सारथी से बोलाराजनीति शास्त्रों में दूत अवध्य कहा गया है, इसलिए तुम्हें छोड़ रहा हूँ। इस प्रकार दूत का असत्कार, असम्मान कर पीछे के दरवाजे से निकाल दिया।
(१८३) ____तए णं से दारुए सारही पउमणाभेणं असक्कारिय जाव णिच्छूढे समाणे जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल जाव कण्हं जाव एवं वयासी - एवं खलु अहं सामी! तुब्भं वयणेणं जाव णिच्छुभावेइ।
भावार्थ - तब राजा पद्मनाभ द्वारा तिरस्कृत होकर दारुक सारथी यावत् पिछले दरवाजे से निकलकर वहाँ से चल पड़ा और कृष्ण वासुदेव की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि बांधे प्रणाम कर, कृष्ण वासुदेव से निवेदन किया - स्वामी! आपका वचन सुनकर यावत् क्रुद्ध, रुष्ट होकर द्रौपदी देवी को वापस न लौटाने की बात कहते हुए उसने मुझे पिछले दरवाजे से निकाल दिया। पद्मनाभ का युद्धार्थ प्रयाण
(१८४) तए णं से पउमणाभे बलवाउयं सदावेइ २ त्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणंपडिकप्पेह।तयाणंतरंचणंछेयायरियउवदेसमइ विकप्पणा विगप्पेहिं जाव उवणेति। तए णं से पउमणाहे सण्णद्ध० अभिसेयं दुरूहइ २ त्ता हयगय जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
शब्दार्थ - बलवाउयं - सेनानायक, छेयायरिय - सुयोग्य शिक्षक।
भावार्थ - तब राजा पद्मनाभ ने अपने सेनापति को बुलाया और कहा - देवानुप्रिय! शीघ्र ही मेरे लिये सर्वप्रधान हस्तिरत्न को तैयार करो। तदनंतर सेनापति ने सुयोग्य शिक्षकों-महावतों के उपदेशों एवं विशिष्ट बुद्धि की कल्पना-विकल्पनाओं द्वारा प्रशिक्षित मुख्य हस्ती को उपस्थित किया।
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