Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - पांडवों द्वारा अशिष्टता २३६ Saacoccooooooococccccccccccccccccccccccccccx समुप्पजित्था-अहो णं पंचवा महाबलवगा जेहिं गंगामहाणई बा(व)सटिं जोयणाई अद्ध जोयणं च वित्थिण्णा बाहाहिं उत्तिण्णा, इच्छंतएहिं णं पंचहिं पंडवेहिं पउमणाभे राया हयमहिय जाव णो पडिसेहिए। तए णं गंगादेवी कण्हस्स वासुदेवस्स इमं एयारूवं अज्झत्थियं जाव जाणित्ता थाहं वियरइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे मुहत्तंतरं समासासइ २ त्ता गंगं महाणइं बासडिं जाव उत्तरइ २ त्ता जेणेव पंच-पंडवा तेणेव उवागच्छइ० पंच पंडवे एवं वयासी-अहो णं तुब्भे देवाणुप्पिया! महाबलवगा जेहणं तुब्भेहिं गंगा महाणई बासहि जाव उत्तिण्णा, इच्छंतएहिं णं तुब्भेहिं पउमणाहे जाव णो पडिसेहिए।
शब्दार्थ - थाहं - स्ताद्य-टिकने का आधार।
भावार्थ - कृष्ण बासुदेव के मन में ऐसा भाव उत्पन्न हुआ - अहो! पांचों पाण्डव महाबलशाली है, जिन्होंने साढ़े बासठ योजन विस्तीर्ण गंगा महानदी को भुजाओं से पार कर दिया। लगता है कि उन्होंने पद्मनाभ राजा को जान-बूझकर प्रतिबद्ध पराजित नहीं किया। तब गंगा महानंदी की अधिष्ठात्री गंगा देवी ने कृष्ण का मनः संकल्प जानकर उन्हें टिकने के लिए आधार दे दिया। कृष्ण वासुदेव थोड़ी देर वहाँ विश्राम कर आश्वस्त हुए। आश्वस्त होकर उस साढ़े बासठ योजन महानदी को पार किया तथा जहाँ पांडव थे वहाँ आए। कहने लगे - देवानुप्रियो! आप बड़े बलशाली हैं, जिन्होंने साढ़े बासठ योजन विस्तीर्ण गंगा महानदी को यावत् भुजाओं से पार कर दिया। पद्मनाभ को जान-बूझकर पराजित नहीं किया।
(२०७) तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुब्भेहिं विसजिया समाणा जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छामो २ त्ता एगट्टियाए मग्गणगवेसणं तं चेव जाव णूमेमो तुन्भे पडिवालेमाणा चिट्ठामो। __भावार्थ - कृष्ण वासुदेव द्वारा यों कहे जाने पर पांचों पाण्डवों ने उनसे कहा-देवानुप्रिय! हम आपकी आज्ञानुसार आपसे अलग होकर गंगा महानदी के तट पर पहुँचे। एक बड़ी महानौका
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