Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२३७
अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - पांडवों द्वारा अशिष्टता scccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccck से सत्वर आकर वासुदेव कृष्ण ने आपका पराभव कर, अपमान कर अमरकंका राजधानी को यावत् नष्ट-भ्रष्ट कर डाला है। .
___ . (२०३) ... तए णं से कविले वासुदेवे पउमणाभस्स अंतिए एयमहूँ सोच्चा पउमणाभं एवं वयासी-हं भो पउमणाभा! अपत्थियपत्थिया ५ किण्णं तुमं ण जाणसि मम सरिसपुरिसस्स कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणे? आसुरुत्ते जाव पउमणाभं णिव्विसयं आणवेइ पउमणाभस्स पुत्तं अवरकंकाए रायहाणीए महया २ रायाभिसेएणं अभिसिंचइ जाव पडिगए। . भावार्थ - राजा पद्मनाभ से यह सुनकर कपिल वासुदेव ने कहा - मृत्यु प्रार्थी पद्मनाभ! क्या तुम नहीं जानते, मेरे ही सदृश उत्तम पुरुष कृष्ण वासुदेव का तुमने अनिष्ट किया। कपिल वासुदेव उस पर बहुत ही रुष्ट और क्रुद्ध हुआ तथा पद्मनाभ को देश निर्वासन का आदेश दिया। पद्मनाभ के पुत्र का बड़े समारोह के साथ अमरकंका के राजा के रूप में राज्याभिषेक किया यावत् वह वापस लौट गया। .
पांडवों द्वारा अशिष्टता
(२०४) तए णं से कण्हे वासुदेवे लवण समुई मज्झमझेणं वीईवयइ गंगं उवागए ते पंच पंडवे एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! गंगा महाणइं उत्तरह जाव अहं सुट्टियं लवणाहिवई पासामि। तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं २ एवं वुत्ता समाणा जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छंति २ ता एगट्टियाए णावाए मग्गणगवेसणं करेंति २ त्ता एगट्टियाए णावाए गंगं महाणइं उत्तरंति २ ता अण्णमण्णं एवं वयंति-पहू णं देवाणुप्पिया! कण्हे वासुदेवे गंगं महाणइं बाहाहिं उत्तरित्तए उदाहु णो पहू उत्तरित्तए-त्तिकटु एगट्टियाओ णावाओ णूमेति २ त्ता मुसंति २ ता कण्हं वासुदेवं पडिवालेमाणा २ चिट्ठति।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org