Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - शंख ध्वनि द्वारा दो वासुदेवों का सम्मिलन २३३ Pococcccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx
(१९४) तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धे भारहे वासे चंपा णामं णयरी होत्था। पुण्णभद्दे णामं चेइए। तत्थ णं चंपाए णयरीए कविले णामं वासुदेवे राया होत्था महया हिमवंत० वण्णओ।
भावार्थ - उस काल, उस समय धातकी खंड द्वीप के पूर्वार्द्ध भाग में भरत क्षेत्र में चम्पा नामक नगरी थी। उसमें पूर्णभद्र नामक चैत्य था। चंपानगरी का कपिल वासुदेव राजा था। वह महान् हिमवंत गिरी के सदृश, दृढ़ता आदि में महिमामय था। एतद्विषयक विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र से यहाँ योजनीय है। शंख ध्वनि द्वारा दो वासुदेवों का सम्मिलन
(१६५) .. तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वए अरहा चंपाए पुण्णभद्दे समोसढे। कविले वासुदेवे धम्मं सुणेइ। तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतिए धम्मं सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवस्स संख सदं सुणेइ। तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए ४ समुप्पजित्था-किं मण्णे धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पण्णे? जस्स णं अयं संखसद्दे ममं पिव मुहवाय पूरिए वियंभइ? .
भावार्थ - उस काल उस समय वहाँ भरत क्षेत्र में तीर्थंकर मुनिसुव्रत का चंपानगरी में, पूर्णभद्र चैत्य में पदार्पण हुआ। कपिल वासुदेव जब तीर्थंकर मुनिसुव्रत से धर्म श्रवण कर रहा था, उसे कृष्ण वासुदेव के शंख की ध्वनि सुनाई दी। कपिल वासुदेव के मन में यह विचार । उत्पन्न हुआ - क्या धातकी खण्ड-भारत वर्ष में दूसरा वासुदेव उत्पन्न हुआ जिसकी शंख ध्वनि ऐसी है, जैसे मेरे द्वारा ही बजाई गई हो।
. (१९६) कविले वासुदेवे सद्दाइं सुणेइ। मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org