Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SaccaCccccccomaaaaaacoccccccccccccccccccccoacock सुखासनासीन हुई, तब कृष्ण वासुदेव ने उनसे कहा - भुआ! कहो आपका यहाँ किस प्रयोजन से आगमन हुआ?
- (१६४) तए णं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु पुत्ता! हत्थिणाउरे णयरे जुहिडिल्लस्स रण्णो आगासतलए सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी ण णजइ केणइ अवहिया जाव अवक्खित्ता वा, तं इच्छामि णं पुत्ता! दोवईए देवीए मग्गणगवेसणं कयं।
भावार्थ - तब कुंती देवी ने कृष्ण वासुदेव से कहा - पुत्र! हस्तिनापुर नगर में, महल के ऊपर, अगासी में सुखपूर्वक सोए हुए युधिष्ठिर के पास से द्रौपदी देवी का न जाने किसने अपहरण कर लिया, कौन ले गया, उसे कहाँ डाल दिया? पुत्र! मैं चाहती हूँ, तुम द्रौपदी देवी का मार्गण-गवेषण करो।
(१६५) तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंती पिउच्छिं एवं वयासी - जं णवरं पिउच्छा! दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा जाव लभामि तो णं अहं पायालाओ वा भवणाओ वा अद्धभरहाओ वा समंतओ दोवइं (देविं) साहत्थिं उवणेमि - त्तिक१ कोंतीं पिउच्छिं सक्कारेइ सम्माणेइ जाव पडिविसज्जेइ। ___ भावार्थ - कृष्ण वासुदेव ने अपनी भुआ कुंती से इस प्रकार कहा - भुआजी! मैं और अधिक क्या बतलाऊँ, द्रौपदी देवी का कहीं शब्द यावत् प्रवृत्ति आदि के रूप में कहीं भी पता चल पाए तो मैं चाहे वह पाताल में हो, भवन में हो, अर्द्ध भरत क्षेत्र में हो - जहाँ कहीं हो उन सभी स्थानों से मैं द्रौपदी को हाथों-हाथ ले आऊँगा। यों आश्वस्त कर उन्होंने कुंती देवी का सत्कार-सम्मान किया यावत् विदा किया।
(१६६) तए णं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
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