Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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में उसे रख दिया। देवी द्रौपदी निरंतर बेले- बेले के उपवास आयंबिल से पारणा रूप तपश्चरण
से आत्मानुभावित होती हुई रहने लगी ।
विवेचन द्रौपदी, छह महीने तक श्रीकृष्ण यदि लेने न आएं तो पद्मनाभ की आज्ञा मान्य करने की तैयारी बतलाती है। इस तैयारी के पीछे द्रौपदी की मानसिक दुर्बलता या चारित्रिक शिथिलता है, ऐसा किसी को आभास हो सकता है। किन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं । द्रौपदी को कृष्ण के असाधारण सामर्थ्य पर पूरा विश्वास है। यह जानती है कि कृष्णजी आए बिना रह नहीं सकते। इसी कारण उसने पांडवों का उल्लेख न करके श्रीकृष्ण का उल्लेख किया। उसकी चारित्रिक दृढ़ता में संदेह करने का कोई कारण नहीं है। सूत्रकार ने देवता के मुख से भी यह कहलवा दिया है कि द्रौपदी पाण्डवों के सिवाय अन्य पुरुष की कामना त्रिकाल में भी नहीं कर सकती। वह तो किसी युक्ति से श्रीकृष्ण के आने तक समय निकालना चाहती थी। उसकी युक्ति काम कर गई ।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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उधर पद्मनाभ ने बड़ी सरलता से द्रौपदी की बात मान्य कर ली। इसका कारण उसका यह विश्वास रहा होगा कि कहाँ जम्बूद्वीप और कहाँ धातकीखण्डद्वीप ? दोनों द्वीपों के बीच दो लाख योजन के महान् विस्तार वाला लवणसमुद्र है। प्रथम तो श्रीकृष्ण को पता ही नहीं चलेगा कि द्रौपदी कहाँ है ? पता भी चल गया तो उनका यहाँ पहुँचना असंभव है।
अपने इस विश्वास के कारण पद्मनाभ ने द्रौपदी की शर्त आनाकानी किए बिना स्वीकार कर ली। इसके अतिरिक्त कामान्ध पुरुष की विवेकशक्ति भी नष्ट हो जाती है ।
द्रौपदी की खोज (१५७)
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तणं से जुहुट्ठिल्ले राया तओ मुहुत्तंत्तरस्स पडिबुद्धे समाणे दोवई देविं पासे अपासमाणो सयणिज्जाओ उट्ठेइ २ त्ता दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ २ त्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुइं वा खुइं वा पवत्तिं वा अलभमाणे जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता. पंडू रायं एवं वयासी ।
भावार्थ - द्रौपदी का हरण होने के थोड़ी देर पश्चात् राजा युधिष्ठिर जगा । द्रौपदी देवी को अपने पास नहीं देखा तो उठा। सब तरफ उसकी मार्गण, गवेषण - भलीभांति खोज की। परंतु
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