Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - शील रक्षण की युक्ति २१३ JacocccccOCOCOCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCEKCICICICINEERENCE
भावार्थ - राजा पद्मनाभ ने स्नान किया यावत् वह सब प्रकार के आभूषणों से अलंकृत हुआ। अंतःपुर की परिचारिकाओं से घिरा हुआ वह, जहाँ द्रौपदी थी, वहाँ अशोक वाटिका में आया। द्रौपदी देवी को खिन्न, उद्विग्न यावत् आर्त्तध्यान-चिंता में संलग्न देखा। तब वह उससे बोला - देवानुप्रिये! तुम मन में उद्विग्न, विषण्ण होकर यावत् चिंता कर रही हो? देवानुप्रिये! मेरे पूर्व जन्म के साथी देव द्वारा जंबू द्वीप, भारतवर्ष, हस्तिनापुर नगर से राजा युधिष्ठिर के भवन से यहाँ लाई गई हो।
देवानुप्रिये! तुम मन में दुःखित मत बनो यावत् चिंता मत करो। मेरे साथ तुम प्रचुर भोगों को भोगते हुए सुखपूर्वक रहो।
शील रक्षण की युक्ति
(१५५) ___तए णं सा दोवई देवी पउमणाभं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे २ भारहे वासे बारवईए णयरीए कण्हे णामं वासुदेवे ममप्पियभाउए परिवसइ, तं जड़ णं से छण्हं मासाणं ममं कूवं णो हव्वमागच्छइ तए पं अहं
देवाणुप्पिया! जं तुमं वदसि तस्स आणाओवायवयणणिद्देसे चिट्ठिस्सामि। . शब्दार्थ - कूवं - खोज करने हेतु।
भावार्थ - देवी द्रौपदी ने पद्मनाभ से इस प्रकार कहा - जंबूद्वीप भरत क्षेत्र के अन्तर्गत, द्वारका नगरी में मेरे पति के भ्राता कृष्ण वासुदेव रहते हैं। यदि वे छह महिने तक मेरी खोज करने हेतु, मुझे छुड़ाकर वापस ले जाने हेतु यहाँ नहीं आए तो देवानुप्रिय! जैसा तुम कहोगे, मैं तुम्हारे आदेशानुरूप, वचन और निर्देश में रहूंगी, उसका पालन करूंगी।
(१५६) तए णं से पउमणाभे दोवईए एयमढे पडिसुणेइ २ त्ता दोवई देविं कण्णंतेउरे ठवेइ। तए णं सा दोवई देवी छटुं छट्टेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिल परिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
भावार्थ - पद्मनाभ ने देवी द्रौपदी के इस कथन को स्वीकार किया। कन्याओं के अंतःपुर
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