Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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__ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - नारद का पदार्पण
२०५ విరిదిరిదిరిందిదిరిందిదిందిరిదిరిదిరిదిరిదిరింది द्रोणमुख, पत्तन, संवाह आदि से सुशोभित पृथ्वी तल का अवलोकन करते हुए सुंदर हस्तिनापुर नगर में पहुंचे तथा राजा पाण्डु के महल में अत्यंत वेग पूर्वक समवसृत हुए-उतरे।
विवेचन - वैदिक एवं जैन परम्परा के अन्तर्गत पौराणिक कथा वाङ्मय में नारद एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित हुआ है, जो अत्यंत कला मर्मज्ञ, विविध विलक्षण विद्याओं के पारगामी होने के साथ-साथ बहुत ही कलहप्रिय था। विभिन्न समकक्ष पक्षों में संघर्ष, वैमनस्य और झगड़ा पैदा करना उनका स्वभाव था। ऐसा करने में उसे बहुत आनंद आता था।
इस सूत्र में नारद के लिए 'कच्छुल्ल' विशेषण का प्रयोग हुआ है। इस शब्द की गहराई में जाने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इसके मूल में 'कृच्छ्र' शब्द है। इसका अर्थ कष्ट या क्लेश होता है।
प्राकृत में ऋकार - अ, इ या उ में परिवर्तित हो जाता है। ‘कच्छ' शब्द के 'कृ' में स्थित ऋकार का यहाँ अकार में परिवर्तन हुआ है। अर्थात् 'कृ' - क में बदला है। इसी प्रकार 'छु' में स्थित रकार का 'रलयोःसाम्यम्' के अनुसार ल हो जाने से इस सूत्र में लकार का द्वित्व परिलक्षित होता है।
उत्तरवर्ती प्राकृत एवं अपभ्रंश की प्रवृत्ति के अनुसार शब्द के अंतिम अकार का उकार हो जाता है। इस प्रकार 'छ' - 'छु' में परिवर्तित हो जाता है। - इस प्रकार ‘कृच्छ्रे लातीतित कृच्छल' - जो कष्ट पैदा करता है, वह कृच्छ्रल कहा जाता है। पूर्वोक्त नियमों के अनुसार कृच्छ्रेल का ही प्राकृत रूप 'कच्छुल्ल' है, जिसकी अर्थ के साथ सर्वथा संगति है।
प्रस्तुत सूत्र में नारद द्वारा आकाश गमन करते हुए, ग्रामादि से परिपूर्ण वसुधा को देखने का उल्लेख हुआ है। यहाँ आए हुए विविध आबादी सूचक शब्द प्राचीन साहित्य में, विशेषतः प्राकृत साहित्य में प्रयुक्त होते रहे हैं, जो अपना विशिष्ट अर्थ रखते हैं। प्राचीन साहित्य के आधार पर उन सबका आशय इस प्रकार है - .. __ ग्राम:- जहाँ विशेष कर कृषि जीवी पुरुष रहते थे तथा भूमि जोतने का राजस्व कर देना पड़ता था।
___ आकरः- वे स्थान जहाँ नमक आदि उत्पन्न होता था अथवा जिनके आस-पास खाने होती थीं और वहाँ के लोग उनके आधार पर आजीविका चलाते थे। । नगरः- अधिक आबादी युक्त वे स्थान-शहर जहाँ कृषिजीविता न होने के कारण राजस्व कर नहीं लगता था।
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