Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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DECOR
आवरणी - दूसरे को आवृत ( अन्तर्हित ) करना, ओवयण - अवतरण नीचे उतरने की, उप्पयणिउत्पतनी - ऊँचे उड़ने की, लेसणी - श्लेषणी - व्रज लेप आदि की तरह संधान करने वाली, संकामणि - अन्य शरीर में संक्रमण - प्रवेश कराने वाली, अभिओग - अभियोग-स्वर्णादि बनाने की विद्या, पण्णत्ति प्रज्ञप्ति अज्ञात अर्थ की बोधक, गमणी - यथेच्छ रूप में गमन सामर्थ्यप्रद, थंभणी स्तंभन या स्तब्ध कर देने वाली, विस्सुयजसे - विश्रुतकीर्ति युक्त, रामस्स - बलदेव के, भंडणाभिलासी - झगड़ा ( कजिया) कराने का शौक लिए हुए, समरेसुयुद्धों में, संपराएसु - संग्रामों में, बड़े युद्धों में, सदक्खणं
प्रतिक्षण, असमाहिकारे - झगड़ा करवा कर अशांति उत्पन्न करने वाले, आमंतेऊण - प्रयुक्त कर, पक्कमणि शक्तिप्रदा, गगणगमणदच्छं - आकाश गमन का सामर्थ्य देने वाली ।
उत्कृष्ट गमन
भावार्थ - तभी कच्छुल्ल नामक नारद वहाँ आए। वे देखने में बड़े भद्र और विनीत प्रतीत होते थें किन्तु भीतर में बड़े ही कलहप्रिय थे । मात्र बाहर से ही वे माध्यस्थ भाव दिखलाते थे। वे अपने अनुरागीजनों के लिए आह्लादप्रद, सौम्य और प्रिय थे, सुरूप थे। वे निर्मल, अखंडित, स्वच्छ वस्त्र धारण किए थे। काले मृग के चर्म को उन्होंने उत्तरीय के रूप में
रखा था। उनके हाथ में दण्ड और कमंडलु थे। जटा रूपी मुकुट से उनका मस्तक देदीप्यमान था। उन्होंने यज्ञोपवतीत, रूद्राक्ष की माला, मूंज की मेखला और वल्कल-वृक्ष छाल- इन सबको धारण कर रखा था। उनके हाथ में कच्छपी संज्ञक वीणा थी । संगीत उन्हें प्रिय था । आकाशगामिता के कारण भूमि पर बहुत कम चलते थे। वे संवरणी, आवरणी, अवतरणी, उत्पतनी, श्लेषणी, संक्रामणि, आभियोगिनी, प्रज्ञापिनी, गामनिकी, स्तंभनी आदि अनेक विद्याधरी विद्याओं में विश्रुतकीर्ति - विख्यात थे ।
बलदेव, कृष्ण वासुदेव को इष्ट, प्रिय थे। प्रद्युम्न, प्रतीप, साम्ब, अनिरुद्ध, निषद्य, उन्मुख, सारण, गजसुकुमाल, सुमुख तथा दुर्मुख इत्यादि यादवों के साढे तीन करोड़ परिमित कुमारों के हृदयवल्लभ थे, इनके प्रशंसक थे। कलह, युद्ध एवं कोलाहल उन्हें सहज ही प्रिय थे। दूसरों को संकट में डालने की वे चाह लिए रहते थे। वे लड़ाई-झगड़े एवं संग्राम देखने के बड़े अनुरागी थे। वे चारों ओर क्षण-क्षण कलह कैसे हो, इसकी खोज में लगे रहते थे । इसीलिए वे तीनों लोकों में विशिष्ट बलशाली दर्शाहों के लिए असमाधिजनक थे, चित्त विक्षेपकारक थे । वे आकाश गमन में दक्षता प्रदान करने वाली भगवती प्रक्रमणी विद्या को प्रयुक्त कर आकाश में उड़े। आकाश तल को पार करते हुए वे सहस्रों ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट - मंडब,
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Scccccccc
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