Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා प्रवेश किया। कौटुंबिक पुरुषों को आदेश दिया - देवानुप्रियो! विपुल अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य तैयार करवाओ यावत् यहाँ पूर्ववत् विस्तृत वर्णन योजनीय है यावत् कौटुंबिक पुरुष उस चतुर्विध आहार को आवासों में ले गए। तब वासुदेव आदि बहुत से राजाओं ने स्नान किया, मांगलिक कृत्य किए तथा प्रचुर चतुर्विध आहार यावत् पूर्ववत् सेवन कर आनंदित हुए। हस्तिनापुर में मंगल-महोत्सव
(१३६) तए णं से पंडूराया (ते) पंचपंडवे दोवई च देविं पट्टयं दुरूहेइ २ ता सीयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ २ त्ता कल्लाणकारं करेइ २ ता ते वासुदेव पामोक्खे बहवे रायसहस्से विपुलेणं असण ४ पुप्फवत्थेणं सक्कारेइ सम्माणेइ जाव पडिविसज्जेइ। तए णं ताई वासुदेव पामोक्खाई बहहिं जाव पडिगयाइं।
भावार्थ - तत्पश्चात् राजा पाण्डु ने पांचौ पाण्डवों एवं द्रौपदी को पट्ट पर बिठाया। चांदी-सोने के सफेद और पीले कलशों से स्नान करवाया। शुभोपचार संपादित किए - मंगलोत्सव मनाया। वैसा कर वासुदेव आदि सैकड़ों राजाओं को प्रचुर चतुर्विध आहार, पुष्प, वस्त्र आदि द्वारा सत्कृत-सम्मानित किया यावत् विदा किया। वासुदेव आदि राजा वहाँ से चलकर अपनेअपने नगरों को लौट गए।
(१३७) तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए (सद्धिं अंतो अंतेउर परियाल) सद्धिं कल्लाकल्लिं वारं वारेणं ओरालाई भोगभोगाइं जाव विहरंति। ___भावार्थ - अपने परिजनवृंद सहित पांचों पाण्डव प्रतिदिन, बारी-बारी से द्रौपदी देवी के साथ विपुल सुख-भोग करते हुए यावत् सानंद रहने लगे।
(१३८) तए णं से पंडू राया अण्णया कयाई पंचहिं पंडवेहिं कोंतीए देवीए दोवईए य सद्धिं अंतोअंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडे सीहासणवरगए यावि विहरइ।
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