Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२००
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SCRECORRECEDEKHEECHEReccccccccccccccccccccccccccx देवानुप्रियो! आप मुझ पर अनुग्रह कर अविलंब पधारें।
(१३०) तए णं ते वासुदेव पामोक्खा पत्तेयं २ जाव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - राजा पांडु द्वारा आमंत्रित होकर वासुदेव प्रमुख यावत् राजाओं में से प्रत्येक हस्तिनापुर की ओर जाने को तत्पर हुए।
(१३१) तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरे पंचण्हं पंडवाणं पंच पासायवडिंसए कारेह अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ जाव पडिरूवे।
भावार्थ - तदनंतर राजा पांडु ने अपने कौटुबिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उनको आदेश दिया - देवानुप्रियो! जाओ हस्तिनापुर नगर में पांचों पाण्डवों के लिए सुंदर, अत्यंत ऊँचे प्रासादों का निर्माण करवाओ। यहाँ प्रासाद विषयक वर्णन पूर्वोक्त रूप में यावत् प्रतिरूप शब्द तक ग्राह्य है।
(१३२) तए णं ते कोडुंबियपुरिसा पडिसुणेति जाव करावंति। तए णं से पंडुए राया पंचहिं पंडवेहिं दोवईए देवीए सद्धिं हयगयसंपरिवुडे कंपिल्लपुराओ पडिणिक्खमइ २त्ता जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए। ____ भावार्थ - कौटुंबिक पुरुषों ने राजा का यह आदेश स्वीकार किया यावत् उसी प्रकार प्रासाद निर्मित करवा दिए। तब राजा पाण्डु ने पांचों पाण्डवों एवं द्रौपदी देवी के साथ अश्व, गजादि चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर कांपिल्यपुर नगर से प्रस्थान किया। वह हस्तिनापुर नगर आया।
(१३३) तए णं से पंडुराया तेसिं वासुदेव पामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता कोडुंबिय पुरिसे सहावेइ २ ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरस्स
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org